Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आदमी के ढंग !!!!!

 

उन्मुक्त स्वछंद समुद्र
लहरों से आहत होने लगे

 

 

सुखी अतृप्त बाँझ नदियों के करहाने से
किनारे जमीं में धसने लगे !!

 

 

घायल नंगे पहाड़
हताश उजडने लगे !!

 

 

बौखलाई व्यथित बयार के
पथ भटकने लगे !!!

 

 

वेदना में डूबे बादल
बरसना भूलने लगे !!!

 

 

खेत खलिहान , जंगलों में
जीव व्याकुल होने लगे !!!

 

 

चिड़िया पाखर सब व्याकुल
अब प्राण देने लगे !!!

 

 

सब के सब डरने लगे
आदमी के ढंग बदलने लगे !!!

 


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विश्वनाथ शिरढोणकर

 

 

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