कौन नापेगा तेरी मेरी ऊँचाई को
कोई मुग़ालता हैं इस तस्वीर का !!
कोई नक्श था ये बुत इस पत्थर पर
इन्सां को ही इल्म नहीं था घिसने का !!
बेसब्र चाँद को आग़ोश में लेने चला
उसे अंदाज नहीं सूरज की तासीर का !!
साहिल पे बैठे लहरें गिनने से क्या हासिल
अंदाज नहीं तुझे समंदर की गहराई का !!
मर मिटा वो चेहरे पर और काम से गया
इल्म न था उसे खूबसूरती के अंदाज का !!
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विश्वनाथ शिरढोणकर
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