कितने सहज हंस दिया चेहरा
कितने सहज रुला गया चेहरा !!
कितने सहज नैनों ने साधी संधि
कितने सहज उलझ गया चेहरा !!
कितने सहज आइना भूला चेहरा
कितने सहज खुद से डर गया चेहरा !!
कितने सहज पानी से धोया चेहरा
कितने सहज काला पड़ गया चेहरा !!
कितने सहज अपना हुआ चेहरा
कितने सहज पराया हो गया चेहरा !!
कितने सहज भीड़ में चहकता चेहरा
कितने सहज भीड़ में खो गया चेहरा !!
कितने सहज स्वार्थ से चमका चेहरा
कितने सहज शर्मसार हो गया चेहरा !!
कितने सहज सब भूल गया चेहरा
कितने सहज चेहरे पे चिपक गया चेहरा !!
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विश्वनाथ शिरढोणकर
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