Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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छाया -काया

 

छाया है काया है काया की ही छाया है
काया से उपजी गुम हो गयी छाया है !!

 

बरगद का पेड़ घना अन्धेरा कर गया है
मजबूरी में फिर जमीन में धस गया है !!

 

बूढ़ा है जवान है एहसान ही एहसान है
एहसासों का ही यहाँ अब बचा साया है !!

 

आवाज की तुझे जरुरत मुझे भी जरुरत है
फिर भी सड़क पर सन्नाटा कौन लाया है !!

 

हमने जो थामी उंगली निकली छाया है
उसने थामी उंगली निकली वह काया है !!


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विश्वनाथ शिरढोणकर

 

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