Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कहाँ गये वों ख़त !!!

 

वों जज्बातों के दिन रात का पैमाना
अब कहाँ हैं वों हरफों ख़त का ज़माना ?

 

वों दहलीज पर खत का इंतज़ार करना
महबूब की ख़बर के लिये परेशां होना !!

 

वों पन्नोँ में ग़ुलाब की महकती पंखुड़ियां
इत्र में महकते हरफ किताबोँ में छुपाना !!

 

ज़माने के जुल्मों दर्द बयां करती इबारत
वों खत से झांकता आंसुओ का खजाना !!

 

छत पर जाकर अकेले में हरफों से याराना
वों बादलों से इंतजा वों कबूतरों से याराना !!

 

वों इंतज़ार की बेचैनी वों इजहार का यक़ीं
ख़त में ही रूठना , शरमाना और मनाना !!

 

दिल को और क्या चाहिए इक खबर के बाद
गोया ख़त ना हो ,जन्नत में रूहों का मिलना !!

 

अम्मी के खत ,थोड़ा लिखा ज्यादा समझना
चिठी को तार समझ मियां जल्दी घर आना !!

 

मिलने की न आंस , याद मिटाती सिसकियां
रुला गया,मज़बूरी में उसका वो ख़त जलाना !!

 

खत के सब मोहताज़ थे कहाँ गये वों खत ?
अपनोँ के उन खतों में सिमटा था जमाना !!

 


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विश्वनाथ शिरढोणकर

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