वों जज्बातों के दिन रात का पैमाना
अब कहाँ हैं वों हरफों ख़त का ज़माना ?
दहलीज पर खत का मचलता इंतज़ार
बेसब्र यूँ क़ासिद को उसका सताना !!
वों पन्नोँ में ग़ुलाब की महकती पंखुड़ियां
नजरों में डूबे महकते हरफों का शरमाना !!
ज़माने के जुल्मों दर्द बयां करती इबारत
खत से झांकता आंसुओ का खजाना !!
छत पर जाकर अकेले मेँ हरफों से यारी
बादलोँ से इंतजा वों कबूतरों का याराना !!
इंतज़ार की बेचैनी वों इजहार का यक़ीं
ख़त में शरमाना रूठना , उसका मनाना !!
दिल को क्या चाहिए इक खबर के बाद
आते आते उठ गया उसका जनाज़ा !!
आशिक के खत थोडी लिखी ज्यादा समझना
आसा न था दिल के दर्द का समझाना !!
मिलने की न आंस , याद मिटाती सिसकियां
रुला गया,मज़बूरी में वो ख़त उसका जलाना !!
सब खत के मोहताज़ थे कहाँ गये वों खत ?
अपनोँ की दुनियाँ जिनमें सिमटा था जमाना !!
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विश्वनाथ शिरढोणकर
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