Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ख़ून लाल लाल

 

मैने जैसे ही भरी उड़ान ऊँचे आसमान में

सूरज की तपिश में उबला,ख़ून लाल लाल !!

बार बार क्यों सोचे , तू ऐसा और मै वैसा

इंसानियत को तरसता, ख़ून लाल लाल !!

किस समूह का तू और किस समूह का मै

फिर से एक बार जाँच ले, ख़ून लाल लाल !!

पल पल की आग जाने क्या राख कर देगी

ख़ून को ख़ून की प्यास, ये ख़ून लाल लाल !!

जान लेवा है तेरा ये रूठना और बरसना

और कितना चाहिए तुझे ख़ून लाल लाल !!

बह रहा है तुझ में और मुझमे ख़ून लाली लाल

क्यों कर हुए जा रहा सफ़ेद,ये ख़ून लाल लाल ?

क्यों कर बहा रहे है रास्तों पर दरियां खून की

क्यों खोजते है तीमारदारी में खून लाल लाल ?

देख फिर से मत कुरेदे वों गुज़रे झग़डे फ़साद

तलवार पे ही रहने दे अब सुखा ख़ून लाल लाल !!

जान जाती जिस्म से तब ख़ून ये जाता कहाँ है ?

फिर आज इतना क्यूँ बर्फ़ानी ख़ून लाल लाल ?

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विश्वनाथ शिरढोणकर

 

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