मैं उन्मुक्त पंछी
मत करना मेरा विश्वास
उड़ने को है स्वच्छंद
मेरा अनंत आकाश !!
पांव नहीं बांधों मेरे
टिक न पाएगी बेडी
हाथ खुले रहने दो ,
सज न पाएगी हथकड़ी !!
क्यों मेरा मोह करते
मिले नहीं वो कब बिछड़ते
मुझमे विरक्ति स्वच्छंद
हार गया मृत्यु का छंद !!
करो नहीं अब कोई द्वन्द
चाहे कितनी गर्म हो श्वास
भ्रमरों को ही मिलता मकरंद
चाहे कितने उबले नि:श्वास !!
मेरा चिंतन है सायास ,
समय नहीं करता प्रयास
मत समय की राह देखो
भ्रमित करता रहेगा प्रयास !!
डोर भले बंधी हो जीवन से
मृत्यु नहीं मिलती मृत्यु से
मुझे रोक नहीं पाएगा
ले दे कर कोई प्रयास !!
आसक्ति के द्वार पर
विरक्त मन के क्या हो ठाट
भावनाओं की जन्जीरों में
कही पड़े ना उलटी गांठ !!
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विश्वनाथ शिरढोणकर
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