Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैं !!!!!

 

मैं ईश्वर ,
वह आया
उसने साष्टांग दंडवत किया
कुछ देर जमीन पर लेटा रहा
फिर उठकर विनम्रता से
सर झुकाकर हात जोड़े
मुझे हार पहनाया
नारियल चढ़ाया
मुझे स्वर्ण मुकुट भी चढ़ाया
दानपेटी में
बहुत बड़ी दान राशि डाली
उसके भ्रष्टाचार में
मुझे शामिल कर लिया
प्रसन्नता से घर गया !!

 

 

मैं पत्थर
वह आया
जोर जोर से रोने लगा
पत्थर से कुछ बोलने की आशा
वह विलाप करता रहा
आहत हो अपने आंसू पोछे
फटी हुई कमीज की फटी जेब में
अपने दोनों हाथ डाले
बहुत देर मौन खड़ा मुझे देखता रहा
मुझे मौन देख कर
पहले वह व्यग्र हुआ
फिर उदासी लिए घर गया !!

 

 

मैं राक्षस
वह आया
मुझे प्रसन्न करने हेतु
मेरे लिए उसने बलि दिया
बेजुबान निरपराध का बलि पाकर
मुझे प्रसन्न समझ कर
वह प्रसन्न होगया
संतुष्टि और समाधान से
ख़ुशी ख़ुशी घर गया !!

 


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विश्वनाथ शिरढोणकर

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