Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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न लफ़्ज ही मिलते है ना कोई तरन्नुम

 

न लफ़्ज ही मिलते है ना कोई तरन्नुम
गजल है कि आती नहीं , बेचैन शायर है !!

 

खिचा चला आए कोई ,वो तासीर नहीं है
गजल कुछ उदास है और बावरा शायर है !!

 

रूह में घुल जाए वो मोहब्बत नहीं है
घायल है गजल और जख्मी शायर है !!

 

रगों में दौड़ पड़े वो दर्दो हरफ़ नहीं है
बेज़ार, अपने ही गम में कैद शायर है !!

 

रदीफ़ है न काफिया न मकता ही कही है
कलम रूठे ,कागज बेजान,हैरान शायर है !!

 

ना अंजाम का सोच न आगाज की खबर
गजल आगे दौड़ रही , और पीछे शायर है !!

 


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विश्वनाथ शिरढोण कर

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