Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नसीब

 

क़यामत के दिनों में मर जाते जहर पी के

जिंदा रहते तो जन्नत के मजे नसीब होते !!

 

फकीरे फ़ाक़ा मस्ती में ऐशो आराम कहाँ ?

बारहमासी फलते ख़ुशी-ओ-गम एक होते !!

 

माना नीलामी के उसूल हर जगह अलग से

नीलामी के पाहिले ही लोग है बिक जाते !!

 

यूँ हो गए खल्लास तो बर्बादियों का क्या ?

मरा हुआ मुर्दा होगा कफ़न ओढ़ते ओढ़ते !!

 

तेरी खामोशी से मेरी खामोशियों का क्या ?

लड़खड़ा जाएगी तेरी जुबां मेरे बोलते बोलते !!

 

 

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विश्वनाथ शिरढोणकर

 

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