क़यामत के दिनों में मर जाते जहर पी के
जिंदा रहते तो जन्नत के मजे नसीब होते !!
फकीरे फ़ाक़ा मस्ती में ऐशो आराम कहाँ ?
बारहमासी फलते ख़ुशी-ओ-गम एक होते !!
माना नीलामी के उसूल हर जगह अलग से
नीलामी के पाहिले ही लोग है बिक जाते !!
यूँ हो गए खल्लास तो बर्बादियों का क्या ?
मरा हुआ मुर्दा होगा कफ़न ओढ़ते ओढ़ते !!
तेरी खामोशी से मेरी खामोशियों का क्या ?
लड़खड़ा जाएगी तेरी जुबां मेरे बोलते बोलते !!
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विश्वनाथ शिरढोणकर
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