Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

रंग

 

रंग थे रंगने के लिए रँगा कर देख लिए
रंगने के बाद सब लग रहे थे एक से !!

 

रंगने से पहिले क्या खूब अलग से रंग थे
हंस कर बोले देखलो कर के अलग फिर से !!

 

रंगने के लिए ही हम लाल हो या नीले
आज हम एक है पर वजूद थे अलग से !!

 

रंग जज्बातों के हम गम हो के ख़ुशी
हम मिलाते सब को ,वरना कौन मिले किससे ?

 

सब खेले हमसे देखो बस एक ही रोज
हम ही खेलते रोज राजा से और रंक से !!

 


-----------------------------------------------
विश्वनाथ शिरढोणकर

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ