इनके भी नहीं उनके भी नहीं
आसमान से टपके है
खजूर पे अटके हैं
वें किसी के भी नहीं !
वैसे तो खासमखास है
पर जो वे कहते है
उससे किसी का वास्ता नहीं !
किसी की ऐनक से देख
किसी की टोपी चुराले
किसी की लाठी का सहारा
वें किसी के लायक नहीं !
जोश है जवानी का
जूनून हैं शोहरत का
गरीबों के मसीहा हैं
रईसी के ठाट हैं
आम हैं न खास हैं
अपने आप में मस्त
किसी के मददगार नहीं !
शोर बहुत हैं कि
जन्नत से आये हैं
जहन्नुम में भटक रहे हैं
जानते हैं वें खूब
सियासत में कोई खुदा नहीं !
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विश्वनाथ शिरढोणकर
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