Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सियासत दिल्ली की

 

इनके भी नहीं उनके भी नहीं
आसमान से टपके है
खजूर पे अटके हैं
वें किसी के भी नहीं !

 

 

वैसे तो खासमखास है
पर जो वे कहते है
उससे किसी का वास्ता नहीं !

 

 

किसी की ऐनक से देख
किसी की टोपी चुराले
किसी की लाठी का सहारा
वें किसी के लायक नहीं !

 

 

जोश है जवानी का
जूनून हैं शोहरत का
गरीबों के मसीहा हैं
रईसी के ठाट हैं
आम हैं न खास हैं
अपने आप में मस्त
किसी के मददगार नहीं !

 

 

शोर बहुत हैं कि
जन्नत से आये हैं
जहन्नुम में भटक रहे हैं
जानते हैं वें खूब
सियासत में कोई खुदा नहीं !

 

 

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विश्वनाथ शिरढोणकर

 

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