मै उन्मुक्त पंछी मत करना मेरा विश्वास
उड़ने को है स्वछंद मेरा अनंत आकाश !
पांव मेरे नहीं बांधो टिक न पायेगी बेडी
हाथ खुले रहने दो सज न पायेगी हथकड़ी !
क्यों मेरा मोह करते? मिले नहीं वो कब बिछड़ते
डोर भले बंधी जीवन से ,अंत से अंत कहाँ है मिलते !
चाहे हो आसक्त श्वास करो नहीं अब कोई द्वन्द
जाने कितने हो आभास पर हार जाता मृत्यु का छंद !
मेरा चिंतन है सायास , समय कभी नहीं करता प्रयास
चाहे कितने पलते निःश्वास या फिर उफनते ढेरो विश्वास !
आसक्ति के द्वार पर विरक्त मन के क्या हो ठाट ?
महलों के कैदखानों में कही पड़े न उलटी गांठ !
किसके आंसू ठंडा कर पाएं है दोज़ख की आगको
मत रोको अब जानलो अनंत है ब्रम्हांड विचरने को !
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विश्वनाथ शिरढोणकर
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