Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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उन्मुक्त पंछी

 

मै उन्मुक्त पंछी मत करना मेरा विश्वास
उड़ने को है स्वछंद मेरा अनंत आकाश !

 

पांव मेरे नहीं बांधो टिक न पायेगी बेडी
हाथ खुले रहने दो सज न पायेगी हथकड़ी !

 

क्यों मेरा मोह करते? मिले नहीं वो कब बिछड़ते
डोर भले बंधी जीवन से ,अंत से अंत कहाँ है मिलते !

 

चाहे हो आसक्त श्वास करो नहीं अब कोई द्वन्द
जाने कितने हो आभास पर हार जाता मृत्यु का छंद !

 

मेरा चिंतन है सायास , समय कभी नहीं करता प्रयास
चाहे कितने पलते निःश्वास या फिर उफनते ढेरो विश्वास !

 

आसक्ति के द्वार पर विरक्त मन के क्या हो ठाट ?
महलों के कैदखानों में कही पड़े न उलटी गांठ !

 

किसके आंसू ठंडा कर पाएं है दोज़ख की आगको
मत रोको अब जानलो अनंत है ब्रम्हांड विचरने को !

 


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विश्वनाथ शिरढोणकर

 

 

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