Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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यादों का पिटारा खोला

 

 

yadonka

यादों का पिटारा खोला तो खुलता चला गया
कुछ था कुछ हैं ,एहसास कराता चला गया !!

 

प्रेम , वचन , मनुहार के बीते वो सुनहरे पल
कुछ था कुछ हैं , मैं कहीं खोता चला गया !!

 

वो आँगन महका दहलीज महकी बेली महकी
कुछ था कुछ हैं , महक घोलता चला गया !!

 

सफ़ेद पन्नों पर उसके काले हर्फों की जादूगरी
कुछ था कुछ हैं, सब कुछ मिटाता चला गया !!

 

सूरज कैद हो गया लो अब चांद भी छुप गया
कुछ था कुछ है ,दिल पे पत्थर रखता चला गया !!

 

 

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विश्वनाथ शिरढोणकर

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