Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

न आरोह है,न

 

न आरोह है,न ही अवरोह है
दाल रोटी की निसदिन उहापोह है
न लय है,न स्वर है,न संगीत है
ये बगावत है, नारा है,एक द्रोह है।
न आरोह है,न ही अवरोह है,
दाल-रोटी कि निसदिन उहापोह है।
ये हारी-थकी शाम का पाँव है
ये संसद में बिकता हुआ गाँव है
बिना मछ्ली लिए लौटती नाव है
गीत खोया जहाँ ये वही खोह है।

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ