अविच्छेदित धारा विद्युत ....बिजली वितरण प्रणाली में क्रांति का सूत्रपात
विवेक रंजन श्रीवास्तव
अधीक्षण इंजीनियर
म. प्र. पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी
ओ बी ११ . रामपुर , जबलपुर म. प्र.
मो ०९४२५८०६२५२
देश में बिजली की कमी के चलते पिछले वर्षो में घंटो का पावर कट बहुत आम हो गया है . बिजली की समस्या पर चुनाव लड़े जा रहे हैं . ऐसे समय में जहाँ नीतिगत राजनैतिक निर्णय समस्या का समाधान कर सकते हैं वहीं तकनीकी अनुसंधान भी क्रांति कारी परिवर्तन ला सकता है . बिजली के क्षेत्र में लम्बे समय से अनुसंधान और आविष्कार पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता पर मैं लिखता आ रहा हूं . हम आज भी पुरानी परंपरागत विद्युत वितरण प्रणाली से ही उपभोक्ताओ तक बिजली पहुंचा रहे हैं . पिछले कुछ दशको में इलेक्ट्रानिक्स ने व्यापक प्रगति की है अतः इलेक्ट्रो मेकेनिकल उपकरणो को इलेक्ट्रो इलेक्ट्रानिक उपकरणो में बदलने के लिये अनुसंधान पर व्यापक व्यय करने की जरूरत है . हमारे घरों में २२० वोल्ट पर ५० हर्टज की ए सी विद्युत से आपूर्ती की जाती है . अमेरिका सहित अन्य अनेक देशो में ११० वोल्ट पर वितरण प्रणाली बनाई गई है . घरो में जो अधिकांश उपकरण हम उपयोग करते हैं जैसे टी वी , कम्प्यूटर , साउंड सिस्टम वे वास्तव में डी सी करेंट पर लो वोल्टेज पर चलते हैं . इन उपकरणो में प्रत्येक में इस परिवर्तन के लिये छोटे छोटे एडाप्टर , ट्रांस्फारमर लगाये जाते हैं . जिसके कारण उनमें गर्मी पैदा होती है और उससे निपटने के लिये वहां छोटा सा पंखा भी लगाना पड़ता है , यही नही समुचे उपकरण का वजन और साइज भी इस वजह से बढ़ जाता है . यदि इन उपकरणो को सीधे ही उनकी आवश्यकता के वोल्टेज पर डी सी सप्लाई दी जावे तो इन उपकरणो का आकार बहुत छोटा हो सकता है , क्योकि मूलतः उनमें एक इलेक्ट्रानिक प्लेट ही होती है . पर इसके लिये हमें विद्युत वितरण प्रणाली में आमूल चूल परिवर्तन करना पड़ेगा . जिसके लिये व्यापक अनुसंधान और बड़ी इच्छा शक्ति की जरुरत है . हवाई जहाज , ट्रेन , कार बस में भी जहां केवल बैटरी से विद्युत प्रदाय होता है लाइट तथा पंखे सहित ये उपकरण हम उपयोग कर पाते हैं , अर्थात यह किया जा सकता है व तर्क संगत है . यही नही आज सोलर पावर के व्यापक उपयोग में जो सबसे बड़ी बाधा है वह यही है कि सोलर सैल से उत्पादित बिजली डी सी होती है और कम वोल्ट पर ही होती है . एक बात और , फोकस के जरिये हम एल ई डी बल्बो से भी प्रकाश की आवश्यकता पूरी कर सकते हैं . आज तो सड़क बत्ती में भी सी एफ एल ट्यूब का प्रयोग होने ही लगा है . मतलब यह कि २२० वोल्ट पर विद्युत आपूर्ति से भले ही लाइन लास कम होने का तर्क दिया जावे पर शायद अनुसंधान यह प्रमाणित कर सकते हैं कि अब २२० वोल्ट की विद्युत आपूर्ति अप्रासंगिक हो चली है .
आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है .पावर कट की समस्या पर काम करते हुये आई आई टी मद्रास के प्रो. अशोक झुनझुनवाला जो प्रधानमंत्री जी के वैज्ञानिक सलाहकार भी हैं तथा श्री भास्कर राममूर्ति , कृष्णा वासुदेवन , लक्ष्मी नरसम्मा , उमा राजेश ,आर. कुमारावेल ,एम साईराम व जननी रंगराजन की टीम ने इस दिशा में एक महत्वपूर्ण परियोजना पर सफलता पाई है . उनकी इस परियोजना से हर घर २४ घंटे अविच्छेदित धारा विद्युत से रोशन रह सकता है . अभी यह परियोजना पायलट प्रोजेक्ट के रूप में दक्षिणी राज्यो में ली जा रही है . सदैव रोशनी की इस जादुई परियोजना का सार तत्व यह है कि जब पावर कट करना जरूरी हो तब बिजली वितरण प्रणाली में २२० की जगह अत्यंत कम ४८ वोल्ट पर विद्युत आपूर्ति जारी रखी जावे . प्रत्येक उपयोगकर्ता अपने उपयोग स्थल पर एक विशेष उपकरण लगावेगा , जो उपकरण इस लो वोल्ट ए सी बिजली को डी सी में बदल देगा . उपयोग स्थल पर डी सी बिजली से चलने वाले बल्ब , पंखे इत्यादि की समानांतर फिटिंग होगी . जब वितरण ट्रांस्फारमर पावर कट हेतु २२० वोल्ट से ४८ वोल्ट में सप्लाई करेगा तो उपभोक्ता के घर पर लगा इलेक्ट्रानिक उपकरण इस परिवर्तन को पहचानकर ए सी आपूर्ति लाइन की जगह डी सी लाइन को सक्रिय कर देगा और पूरी तरह अंधेरे की जगह न्यूनतम १०० वाट के बल्ब , पंखे , मोबाइल चार्जर व अन्य घरेलू उपकरण डी सी विद्युत से चालू रखे जा सकेंगे . इस तरह "ना मामा नीक तो कनवा मामा ठीक " वाली कहावत के अनुसार अंधेरे से लड़ा जा सकेगा . प्रति उपयोगकर्ता १०० वाट की मामूली खपत को बिजली वितरण कम्पनी सहजता से एदजस्ट कर सकेगी . इसके लिये वितरण केंद्र पर बिजली वितरण कम्पनी को प्रति सबस्टेशन लगभग ३००० रुपये तथा , प्रत्येक उपभोक्ता को लगभग १००० रुपये के उपकरण लगाना होंगे . उपभोक्ता को समानांतर डी सी लाइन की फिटिंग व डी सी से चलने वाले बल्ब पंखे आदि लगवाना पड़ेंगे . इनवर्टर का उपयोग समाप्त हो सकेगा . इसके विपरीत उपभोक्ता अपने घर पर सोलर सेल से सीधे विद्युत आपूर्ति करके कभी भी इस डी सी फिटिंग का उपयोग करके बिजली की बचत कर सकेगा . अभी यह परियोजना प्रायोगिक स्तर पर है , किन्तु स्वागतेय है , क्योकि यह सोलर सिस्टम के उपयोग को बढ़ावा देने और विद्युत आपूर्ति प्रणाली पर नये अनुसंधान को आकर्षित करती दिखती है .
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