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देखन मे छोटे लगे घाव करें गंभीर- हरेराम समीप के हाइकू

 

कृति - बूढा सूरज (हाइकू कवितायें)
कवि - हरेराम समीप
प्रकाषक - पुस्तक बैंक, फरीदाबाद
पृष्ठ - 104
मूल्य - 195-
समीक्षक- विवेक रजंन श्रीवास्तव, संयोजक पाठक मंच
ओ.बी.11 एमपीर्इबी कालोनी रामपुर जबलपुर

 

न्यूनतम शब्दो मे अधिकमत बात कहने की दक्षता ही कविता की परिभाषा है। विषेष रूप से जब वह कविता जापान जैसे देष से हो जहा वृक्षो के भी बोनसार्इ बनाये जाते है तो हाइकू शैली मे कविता को अभिव्यकित मिलती है। साहित्य विष्वव्यापी होता है। वह किसी एक देष या भाषा की धरोहर मात्र हो ही नही सकता। जापानी भाषा की विधा हाइकू की वैषिवक लोकप्रियता ने यह तथ्य सि़द्ध कर दिया है। भारतीय भाषाओ मे सर्वप्रथम 1919 मे गुरूवर रवीन्द्र नाथ टैगौर ने हाइकू का परिचय करवाया था। फिर 1959 मे हिंदी हाइकू की चर्चा का श्रेय अज्ञेय को जाता है। जवाहर लाल नेहरू विष्वविधालय दिल्ली के जापानी भाषा के प्राध्यापक सत्यभूषण वर्मा ने भारत मे हाइकू सृजन को वैषिवक साहितियक प्रतिष्ठा दिलवार्इ।


जिस प्रकार गजल के मूल मे परवर दिगार के प्रति रूमानियत की अभिव्यकित है। ठीक उसी के समानान्तर हाइकू मे बौद्ध दर्षन तथा प्रकृति के प्रति सौदंर्य चेतना का प्रवाह रहा है। समय के साथ-साथ एवं रचनाकारो की प्रयोग धर्मिता के चलते हाइकू की भाव पक्ष की यह अनिवार्यता पीछे छूटती गर्इ। किंतु तीन पकिंतयो मे पांच सात पांच मात्राओ का स्थूल अनुषासन आज भी हाइकू की विषेषता है।


हरे राम समीप जनवादी रचनाकार है। वे विगत लंबे समय से जवाहर लाल नेहरू स्मारक निधि तीन मूर्ति भवन मे सेवारत है। उन्हें संत कबीर राष्ट्रीय षिखर सम्मान, हरियाणा साहित्य अकादमी पुस्तक पुरस्कार, फिराक गोरखपुरी सम्मान जैसे अनेक सृजन सम्मान प्राप्त हो चुके है। स्वाभाविक ही है कि उनके वैषिवक परिदृष्य एवं राष्ट्रीय चिंतन का परिवेष उनकी कविताओ मे भी परिलक्षित होगा। उदाहरण स्वरूप यह हाइकू देखे-
किताबें रख
बस इतना कर
पढ ले दिल
वसुधैव कुटुम्बक का भारतीय ध्येय और भला क्या है, या फिर,
गलीचे बुने
फिर भी मिले उन्हे
नंगी जमीन

 

हिंदी एवं उदर्ू भाषाओ पर हरे राम समीप का समान अधिकार है। अत: उनके हाइकू मे उदर्ू भाषा के शब्दो का प्रयोग सहज ही मिलता है।
पहने फिरे
फरेब के लिबास
कीमती लोग
या
शराफत ने
कर रखा है मेरा
जीना हराम

 

कबीर से प्रभावित समीप जी लिखते है
चाक पे रखे
गिली मिटटी, सोचू मैं
गढूं आज क्या
और
कैसा सफर
जीवन भर चला
घर न मिला
अंग्रेजी को देवनागरी मे अपनाते हुये भी उनके अनेक हाइकू बहुत प्रभावोत्पादक है।
हो गए रिष्ते
पेपर नेपकिन
यूज एंड थ्रो
या
निगल गया
मोबाइल टावर
प्यारी गौरैया
कुल मिलाकर बूढा सूरज मे संकलित हरेराम समीप के हाइकू उनकी सहज अभिव्यकित से उपजे है। वे ऐसे चित्र है जिन्हें हम सब रोज सुबह के अखबार मे या टीवी न्यूज चैनलो मे रोज पढते और देखते है किंतु कवि के अनदेखा कर देते है। किंतु उनके संवदेनषील मन ने परिवेष के इन विविध विषयो को सूक्ष्म शब्दो मे अभिव्यक्त किया है। संकलन मे कुल 450 हाइकू संग्रहित है। सभी एक दूसरे से श्रेष्ठ है। पुस्तक का शीर्षक बूढा सूरज जिस हाइकू पर केनिद्रत है वह इस तरह है।
बूढा सूरज
खदेडे अंधियारे
अन्ना हजारे
वर्तमान सामाजिक सिथति मे अन्ना हजारे के लिये इससे बेहतर भला और क्या उपमा दी जा सकती है। कवि से और भी अनेक सूत्र स्वरूप हाइकू की अपेक्षा हिंदी जगत करता है। समीप जी ने गजले, कहानिया और कवितायें भी लिखी है पर हाइकू मे उन्होने जो कर दिखाया है उसके लिये यही कहा जा सकता है कि देखन मे छोटे लगे घाव करें गंभीर. समीप जी ने अपने अनुभवो के सागर को हाइकू के छोटे से गागर में सफलता पूर्वक ढ़ाल दिया है .

 




विवके रंजन श्रीवास्तव

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