अब तो मोबाईल का जमाना आ गया है , वरना टेलीफोन के जमाने में हमारे जैसो को भी लोगो को नौकरी पर रखने के अधिकार थे . और उन दिनो नौकरी के इंटरव्यू से पहले अकसर सिफारिशी टेलीफोन आना बड़ी कामन बात थी . सेलेक्शन का एक क्राइटेरिया यह भी रखना पड़ता था कि सिफारिश किसकी है . मंत्री जी की सिफारिश , बड़े साहब की सिफारिश और रिश्तेदारो की सिफारिश में संतुलन बनाना पड़ता था . एक सिफारिशी घंटी केंडीडेट का भाग्य बदलने की ताकत रखती थी . अक्सर नेता जी से संबंध टेलीफोन की सिफारिशी घंटी बजवाने के काम आते थे .
आज भी विजिटिंग कार्ड का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है टेलीफोन नम्बर , और टेबिल का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण होता है टेलीफोन . टेलीफोन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है सिफारिश . टेलीफोन की घंटी से सामने बैठा व्यक्ति गौण हो जाता है , दूर टेलीफोन के दूसरे छोर पर बैठा व्यक्ति महत्वपूर्ण हो जाता है . जिस तरह पानी उंचाई से नीचे की ओर प्रवाहित होता है उसी तरह टेलीफोन में हुई वार्तालाप का नियम है कि इसमें हमेशा ज्यादा महत्वपूर्ण आदमी , कम महत्वपूर्ण आदमी को इंस्ट्रक्शन देता है . उदाहरण के तौर पर मेरी पत्नी मुझे घर के टेलीफोन से आफिस के टेलीफोन पर इंस्ट्रक्शन्स देती है . मंत्री जी बड़े साहब को और बड़े साहब अपने मातहतो को महत्वपूर्ण या गैर महत्वपूर्ण कार्यो हेतु भी महत्वपूर्ण तरीके से आदेशित करते हैं . टेलीफोन के संदर्भ में एक नियम और भी है , ज्यादा बड़े लोग अपना टेलीफोन स्वयं नहीं उठाते . इसके लिये उनके पास पी ए टाइप की कोई सुंदरी होती है जो बाजू के कमरे में बैठ कर उनके लिये यह महत्वपूर्ण कार्य करती है और एक्सटेंशन टेलीफोन पर महत्वपूर्ण काल ही फारवर्ड करती है . टेलीफोन एटीकेट्स के अनुसार मातहत को अफसर की बात सुनाई दे या न दे , समझ आये या न आये , किन्तु सर ! सर ! कहते हुये आदेश स्वीकार्यता का संदेश अपने बड़े साहब को देना होता है . मुझे गर्व है कि अपनी लम्बी नौकरी में मैने ऐसे लोग भी देखे हैं जो बड़े साहब का टेलीफोन आने पर अपनी सीट पर खड़े होकर बात करते हैं . ऐसे लोगो को नये इलेक्ट्रानिक टेलीफोन में कालर आई डी लग जाने से बड़ा लाभ हुआ है . आजकल बड़े साहब का मोबाईल आने पर ऐसे लोग तुरंत सीट से उठकर गतिमान हो जाते हैं . यह बाडी लेंगुएज उनकी भारी दबाव में आने वाली मानसिक स्थिति की द्योतक होती है .
हमारी पीढ़ी ने चाबी भरकर चार्ज कर बात करने के हैंडिल वाले टेलीफोन के समय से आज के टच स्क्रीन मोबाईल तक का सफर तय किया है . इस बीच डायलिग करने वाले मेकेनिकल फोन आये जिनकी वही रिटी पिटी ट्रिन ट्रिन वाली घंटी होती थी जैसे आजकल आधे कटे सेव वाले मंहगे एप्पल मोबाईल की एक ही सुर की घंटी होती है . समय के साथ की पैड वाले इलेक्ट्रानिक फोन आये . और अब हर हाथ में मोबाईल का नारा सच हो रहा है , लगभग हर व्यक्ति के पास दो मोबाइल या कमोबेश दो सिम तो हैं ही . एक समय था जब टेलीफोन आपरेटर की शहर में बड़ी पहचान और इज्जत होती थी , क्योकि वह ट्रंक काल पर मिनटो में किसी से भी बात करवा सकता था . शहर के सारे सटोरिये रात ठीक आठ बजे क्लोज और ओपन के नम्बर जानने के लिये मटका किंग से हुये इशारो के लिये इन्हीं आपरेटरो पर निर्भर होते थे . आज तो पत्नी भी पसंद नही करती कि पति का काल उसके मोबाईल पर आ जाये , पर मुझे स्मरण है उन दिनो हमारे घर पर पड़ोसियो के फोन साधिकार आ जाते थे . लाइटनिंग काल के चार्ज आठ गुने लगते थे अतः लाइटनिंग काल आते ही लोग सशंकित हो जाते थे .
मैं विद्युत विभाग में अधिकारी हूं , हमारे विभाग में बिजली की हाई टेंशन लाइन पर पावर लाइन कम्युनिकेशन कैरियर की अतिरिक्त सुविधा होती है , जिस पर हम हाट लाइन की तरह बातें कर सकते हैं , बातें करने की ठीक इसी तरह रेलवे की भी अपनी समानांतर व्यवस्था है . पुराने दिनो में कभी जभी अच्छे बुरे महत्वपूर्ण समाचारो के लिये हम लोग भी अनधिकृत रूप से अपनी इस समानांतर व्यवस्था का लाभ मित्र मण्डली को दे दिया करते थे . बातो के भी पैसे लगते हैं और बातो से भी पैसे बनाये जा सकते हैं यह सिखाता है टेलीफोन . यह बात मेरी पत्नी सहित महिलाओ की समझ आ जाये तो दोपहर में क्या बना है से लेकर पति और बच्चो की लम्बी लम्बी बातें करने वाली हमारे देश की महिलायें बैठे बिठाये ही अमीर हो सकती हैं . खैर महिलायें जब बातो से पेसे बनायेंगी तब की तब देखेंगे फिलहाल तो मायावती की माया टेलीफोन पर हुई उनकी बातो की रिकार्डिंग सुनाकर लुटती दिख रहि है .
vivek ranjan shrivastava
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