Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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एक ट्वीटी संवेदना अपनी भी

 

एक बुढ़िया जो जिंदगी से बहुत परेशान थी जंगल से लकड़ियां बीनकर उन्हें
बेचकर अपनी गुजर बसर कर रही थी . एक दिन वह थकी हारी लकड़ी का गट्ठर लिये
परिस्थितियो को कोसती हुई लम्बी सांस भरकर बोल उठी , यमराज भी नहीं ले
जाते मुझे ! बाई दि वे यमराज वहीं से गुजर रहे थे , उन्हें बुढ़िया की
पुकार सुनाई दी तो वे तुरंत प्रगट हो गये . बोले कहो अम्मा पुकारा . तो
अम्मा ने तुरंत पैंतरा बदल लिया बोली , हाँ बेटा जरा यह लकड़ी का गट्ठर
उठा कर सिर पर रखवा दे . कहने का आशय है कि मौत से तो हर आदमी बचना ही
चाहता है . जीवन बीमा कम्पनियो की प्रगति का यही एक मात्र आधार भी है ,
पर भई मान गये आतंकवादी भैया तो बड़े वीर हैं उन्हें तो खुद की जान की ही
परवाह नहीं , बस जन्नत में मिलने वाली की हूरो की फिकर है . तो तय है कि
समूल नाश होते तक ये तो आतंक फैलाते ही रहेंगे . आज दुनिया में कही भी
कभी भी कुछ न कुछ करेंगे ही . निर्दोषों की मौत का ताण्डव करने का सोल
कांट्रेक्ट इन दिनो आई एस आई एस को अवार्डेड है .तो .
बड़ी फास्ट दुनिया है , इधर बम फूटा नही , मरने वालो की गिनती भी नही हो
पाई और ट्वीट ट्रेंड होने लगे . फ्रांस के आतंकी ट्रक की बैट्रेक दौड़ पर
, हर संवेदन शील आदमी की ही तरह दिल तो मेरा भी बहुत रोया . दम साधे ,
पत्नी की लाई चाय को किनारे करते हुये मैं चैनल पर चैनल बदलता रहा . जब
इस दुखद घटना की रिपोर्ट के बीच में ही ब्रेक लेकर चैनल दन्त कान्ति से
लेकर निरमा तक के विज्ञापन दिखाने लगा पर मैं वैसा ही बेचैन होता रहा तो
पत्नी ने झकझोर कर मेरी चेतना को जगाया और अपनी मधुर कर्कश आवाज में
अल्टीमेटम दिया चाय ठण्डी हो रही है ,पी लूं वरना वह दोबारा गरम नही
करेगी . चाय सुड़पते हुये बहुत सोचा मैने , इस दुख की घड़ी में , मानवता
पर हुये इस हमले में मेरे और आपके जैसे अदना आदमी की क्या भूमिका होनी
चाहिये ? मुझे याद है जब मैं छोटा था , मेरे स्कूल से लौटते समय एक
बच्चे का स्कूल के सामने ही ट्रक से एक्सीडेंट हो गया था , हम सारे बच्चे
बदहवास से उसे अस्पताल लेकर भागे थे , मैं देर रात तक बस्ता लिये अस्पताल
में ही खड़ा रहा था , और उस छोटी उम्र में भी अपना खून देने को तत्पर था .
थोड़ा बड़ा हुआ तो बाढ़ पीड़ीतो के लिये चंदा बटोरकर प्रधानमंत्री सहायता कोष
में जमा करने का काम भी मेरे नाम दर्ज है . मेरा दिल तो आज भी वही है .
जब भी आतंकवादियो द्वारा निर्मम हत्या का खेल खेला जाता है तो मेरे अंदर
का वही बच्चा मुझ पर हावी हो जाता है . पर अब मैं बच्चा नहीं बचा ,
दुनिया भी बदल गई है न तो किसी को मेरा खून चाहिये न ही चंदा . मुझे समझ
ही नही आता कि इस स्थिति में मैं क्या करूं ? तो आज ट्रेंडिग ट्वीट्स ने
मेरी समस्या का निदान मुझे सुझा दिया है . और मैने भी हैश टैग फ्रांस वी
आर विथ यू पर अपनी ताजा तरीन संवेदनायें उड़ेल दी हैं और मजे से बर्गर और
पीजा उड़ा रहा हूं . हो सके तो आप अपनी भी एक ट्वीटी संवेदना जारी कर दें
और जी भरकर कोसें आतंकवादियो को हा हा ही ही के साथ .

 

 

 

vivek ranjan shrivastava

 

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