विवेक रंजन श्रीवास्तव
रोटी कपड़ा और मकान के साथ यदि कोई प्राथमिकता मानव जाति के लिये है तो वह उसकी कला की , उसके मनोभावो की अभिव्यक्ति ही कही जायेगी . यही कारण है कि आदि मानव ने भी गुफाओ की दीवारो पर चित्रकारी की है , जो आज इतिहासकारो को उस पुरातन सभ्यता को समझने में मदद करते हैं तथा पर्यटको के रुचि के केंद्र हैं .
डिंडोरी व मण्डला जिले की 'गोंड' जनजाति भी अति प्राचीन जनजाति है . रामनगर जिला मण्डला के किले के निकट बड़ादेव की पूजा स्थली गोंडो के लिये अति महत्वपूर्ण है . वहाँ एक अखण्ड धूनी जाने कब से प्रज्वलित रखी जाती है , वहीं परिसर में एक सीढ़ी है , जो बीच में सीधे आकाश की ओर उन्मुख कर रखी गई है , इस पर रात्री में दीप जलाये जाते हैं . संभवतः यह सीढ़ी स्वर्ग सीढ़ी की अवधारणा का बिम्ब है , या परमात्मा को धरती से जोड़ने का आध्यात्मिक बिम्ब है , यह सामाजिक अध्ययनकर्ताओ की विवेचना का विषय हो सकता है . गोंड जनजाति मध्यप्रदेश के सिवाय छत्तीसगढ़ ,बिहार , झारखण्ड , आदि भूभाग में फैली हुई है . इन दिनो अमरकण्टक के निकट एक गांव है पाटनगढ़ , बैगाचक के इस गांव में अधिकांश महिलाए व युवा विशिष्ट कलाशैली में चित्र कैनवास या हैण्ड मेड पेपर पर पोस्टर पेंट से बना रहे हैं . इन चित्रो की विशेषता यह है कि ये चित्रांकन द्विआयामी हैं , हर लोककला शैली की तरह इसमें भी सदा गहराई का तीसरा आयाम लुप्त रहता है, कला के विवेचक इसे लोक कलाओं के साधारण कलाकारों की सादगी और सरलता का परिचायक मानते हैं . चित्र में जिस बारीकी और समय का निवेश किया जाता है उसकी तुलना में आकार के अनुरूप पाँच से दस हजार का मूल्य नगण्य है .ये चित्र कला जगत में भारत भवन भोपाल , पहुंच चुके है । म प्र पर्यटन विभाग इनके पोस्टर बना कर विक्रय कर रहा है , और ये कुछ गोंड कलाकारों की आजीविका का संसाधन बन चुके है , अभिजात्य वर्ग भी इन्हें अब अपने ड्राइंग रूम में लगा रहा है ।
ये कलाकृतियाँ बताती हैं कि फीके सरल सीधे जीवन को भी कलाकार की कल्पना कितनी रंगीन बना सकती है . मोर , शेर , भालू , हिरण , मगर , मछली जैसे जीव जन्तु , नदी , पहाड़ , खेत , पेड़ ही इनके चित्रो के सीधे सादे विषय होते हैं , जिन्हें ये कलाकार लम्बाई व चौड़ाई के द्विआयामी कैनवास पर बहुरंगी रूप देते हैं .रेखाओ , बिन्दुओ से बनाये गये ये चित्र विशिष्ट छबि बनाते हैं . गौंड परिवार इन चित्रो का उपयोग घर के प्रवेश व आांगन में , दीवारो पर बनाकर परिवार के शादी विवाह , जन्म या अन्य धार्मिक अवसरो पर अपनी खुशी प्रगट करने के लिये करते हैं .दीवारो पर चित्रांकन हेतु ये लोग पिसे हुए चावल के घोल , पीली मिट्टी , गेरू और अन्य प्राकतिक रंगों का उपयोग करते हैं . ये चित्र इन लोगों के स्वभाव और रहन सहन का सहज प्रदर्शन हैं. इनसे गोंड जाति के रहन सहन और स्वभाव का परिचय मिलता है.
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