Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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झांकी गणतंत्र की !

 

अपने अपने वोट लिये हुये ढ़ेर सारे लोग
एक नक्शे के दायरे में
इन लोगों के कंधों पर चढ़े हुये
कुछ कम पर ढ़ेर से ही और लोग
उन लोगों के सिरों पर सवार
प्रेम से या बेमुरअव्त एक और घेरा
लोगों पर लोग एक बहुमंजली मीनार की तरह
बहुत ऊपर नीचे वालों की पहुँच से दूर
लटकी हुई
मक्खन की मटकी
 
कोई निपुण
जिसके पास योग्यता से ज्यादा क्षमता होती है
आदमियों के इस पिरामिड पर
धर्म भाषा जअति के कँधों पर
शीर्ष तक चढ़ जाने की
पहुचता है
माखन की मटकी तक
फोड डालता है मटकी
सारे समूह के सीने गर्व से फूल जाते हैं
मटकी तोड डालने के
इस समवेत प्रयास की सफलता पर
माखन की रस वर्षा होती है
कम ज्यादा थोडा बहुत हर कोई खाता है माखन
सबसे नीचे वालों तक
जिनके कंधे दुख रहे होते हैं
ऊपर वालों के बोझ से
मख्खन नहीं भी पहुंचता तो
छाँछ के छींटे पड ही जाते हैं
वे भी भीग जाते हैं
विजय उल्लास में डूब जाते हैं
मटकी टूट जाने की खुशी में जश्न मनाया जाता है
ऐसा गणतांत्रिक पर्व
प्रति पाँच वर्षों में मनाये जाने की परम्परा है
बुद्धिजीवी इसकी हिस्सेदारी में
गहन चर्चा में डूब जाते हैं
लाइव देखते हैं बतियाते हैं
 
देश के नक्शे की सीमा के भीतर ही भीतर
तरह तरह के छोटे बडे नक्शे हैं
जिनमें कई कई रंग रूप की मटकियों में
अलग अलग ऊँचाईयों पर
भांति भाँति का माखन बँधा है
जिसे पाने लोग एक दूसरे को कइयाँ दे रहे हैं
हाथों ही हाथ उठ रहे हैं
बेटे बीबी या साले को
अपनों को उठा रहे हैं
कहीं विरोधियों की टांगें खींच रहे हैं
गिरा रहे हैं
लोग गिर रहे हैं बढ़ रहा है लोकतंत्र
सहयोग श्रम एकता विश्वास ही नही
प्रतिद्वंदिता मजबूरी आक्षेप समझौते
टांग खिचौअल मान मनौअल के अनेकानेक दृश्य
ये ही है झाँकी गणतत्रं की माडल लोकतंत्र के
 
पर मख्खन खाते सरे आम वीडियो मे
पकडे जाने के बाद भी
मख्खन खाने वाला यह ही रटता रहता है
मैया मोरी मै नही माखन खायो
गोपी मैया या बाबा की अदालत
या फिर भरी चौपाल
आगे पीछे कभी ना कभी
कोई न कोई अदालत
थोडी बहुत घुडकी देकर
मख्खन खाने वालों को बरी कर ही देती है
और वह फिर से नया समूह बनाकर
नये तरीकों से दूसरी मटकी तक पहुंचने का
पुर्नप्रयास करने लगता है
 
यक्ष प्रश्न है कि क्या यही गणतंत्र है
क्या माखन की मटकी बाँधने वाला अमला
जो ऊपर ही ऊपर माखन चट कर रहा है
वह भी गणतंत्र है
 
गणतंत्र तो माखन के सामूहिक
सद्भावनापूर्ण मंथन
और उसके सार्वजनिक पारदर्शी सदाशयी उपयोग की
व्यवस्था का नाम है जहाँ
सबसे नीचे वाला भी
बराबरी से कभी सबसे ऊपर चढ़कर
मटकी तोडने का अवसर पा सकता है
सब के हित में स्व को सामुहिकता में
विलीन करके

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