| Aug 26, 2020, 3:23 PM (17 hours ago) |
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कीर्ति वर्धन अग्रवाल स्वयं में किसी बहुमुखी संस्था से कम नहीं
इंजीनियर विवेक रंजन श्रीवास्तव
इंजीनियर विवेक रंजन श्रीवास्तव
कीर्ति वर्धन अग्रवाल स्वयं में किसी बहुमुखी संस्था से कम नहींइंजीनियर विवेक रंजन श्रीवास्तव
अतिरिक्त मुख्य अभियंता
वर्ष २००५ में जब हिन्दी ब्लागिंग अपने शैशव में थी , इंटरनेट के बी एस एन एल , नेटवन कनेक्शन से मैं यूनीकोड पर तख्ती साफ्टवेयर पर लिखकर हिन्दी ब्लाग पोस्ट किया करता था . इंटरनेट पर लेखन के चलते देश व्यापी स्तर पर रचनाकारो से , पत्र पत्रिकाओ के संपादको से संवाद बना . ईमेल के प्रारंभिक समय में अखबार , पत्र , पत्रिकायें आदि अपने ई मेल एड्रेस तो बना लेते थे पर उनमें भेजी गई सामग्री के लिये संपादक जी को फोन करके बताना पड़ता था . कीर्ति वर्धन अग्रवाल उन गिने चुने लेखको में हैं जिन्होने अपने समवयस्क लेखको में समय के साथ हिन्दी की कम्प्यूटर जनित तकनीको को प्रभावी रूप से अपनाया . आज जब मैने गूगल में कीर्ति वर्धन अग्रवाल लिख कर खोज की तो पल भर में ढ़ेरो परिणाम दृष्टव्य हुये , क्या इतना ही पर्याप्त नही है यह लिखने के लिये कि कीर्ति वर्धन अग्रवाल जी पर लिखा जा रहा यह ग्रंथ उनके मूल्यांकन हेतु एक बहुत छोटा सा कदम है . वे एक साथ ही बेंकिंग , ट्रेड यूनियन के लीडर , आलोचक , साहित्यकार , कवि , संपादक ,पत्रकार , बहु भाषा विद , अनुवादक , शोधार्थी , हिन्दी प्रचारक , कार्यक्रम आयोजक , और सबसे बड़ी बात एक अच्छे सरल हृदय मिलनसार इंसान हैं .संक्षेप में वे किसी संस्था के समानान्तर व्यक्तिव हैं .
कीर्ती वर्धन जी से मेरा पहला परिचय जबलपुर में तब हुआ जब वे यहां एक आयोजन में सम्मान ग्रहण करने आये हुये थे . सहज व्यक्तित्व के अग्रवाल जी को उनकी जबलपुर में उपस्थिति का लाभ उठाते हुये मैंने वर्तिका की मासिक काव्य गोष्ठी में निमंत्रित किया , वे एक साहित्यानुरागी के रूप में बड़ी आत्मीयता से तुरंत चले आये अपनी रचनायें सुनाई और वर्तिका के मित्रो की रचनायें पूरी तन्मयता से सुनी .उल्लेखनीय है कि साहित्य में निरंतरता का बड़ा महत्व होता है , हम जबलपुर में वर्तिका के माध्यम से प्रति माह के अंतिम रविवार की दोपहर को एक काव्य गोष्ठी रखते हैं जिसमें सभी मित्र नई रचनायें पढ़ते हैं , किसी न किसी संबंधित व्यक्तित्व को अतिथि के रूप में बुलाकर उसे सम्मानित करते हैं इससे सदस्यो का परिचय का दायरा बढ़ता है , नव लेखन होता है . इसी आयोजन में उस माह में जिस सदस्य का जन्म दिन होता है उसकी एक रचना का बड़ा सा पोस्टर फ्लैक्स तैयार करवा कर हम शहर के किसी सार्वजनिक स्थल पर पूरे माह प्रदर्शन हेतु रखते हैं . नई पीढ़ी में पठनीयता के अभाव को यह हमारा छोटा सा जबाब है , इस प्रयास से वर्तिका स्वयं पाठको तक पहुंचती है . मुझे स्मरण है कीर्ति वर्धन जी ने मंच पर मुझे इस प्रयास के लिये बधाई दी थी . बाद में हम निरंतर मोबाईल , व्हाट्सअप , फेसबुक के जरिये जुड़े हुये हैं . परस्पर वैचारिक आदान प्रदान करते हैं . मुझे उनकी छंदबद्ध रचनायें बहुत पसंद हैं . पारिवारिक जबाबदारियो के साथ यह सारी उपलब्धियां कुछ कागजो में सिमटी हुई इबारतो से अधिक उनके निरंतर कार्य , समर्पण , आस्था और असाधारण योग्यता की दास्तान हैं .
मैं कीर्ति वर्धन जी के सतत सक्रिय साहित्यिक सामाजिक योगदान के लिये उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं और अपनी अशेष मंगलकामनायें उनके उज्वल भविष्य के लिये अभिव्यक्त करता हूं . इस हिन्दी सेवक की शतायु यात्रा में यह अभिलेख ग्रंथ एक छोटा सा पड़ाव ही है , वे उस यात्रा के राही हैं जिनसे हिन्दी जगत को अभी बहुत कुछ पाने की आकांक्षा है .
vivek ranjan shrivastava
अतिरिक्त मुख्य अभियंता
वर्ष २००५ में जब हिन्दी ब्लागिंग अपने शैशव में थी , इंटरनेट के बी एस एन एल , नेटवन कनेक्शन से मैं यूनीकोड पर तख्ती साफ्टवेयर पर लिखकर हिन्दी ब्लाग पोस्ट किया करता था . इंटरनेट पर लेखन के चलते देश व्यापी स्तर पर रचनाकारो से , पत्र पत्रिकाओ के संपादको से संवाद बना . ईमेल के प्रारंभिक समय में अखबार , पत्र , पत्रिकायें आदि अपने ई मेल एड्रेस तो बना लेते थे पर उनमें भेजी गई सामग्री के लिये संपादक जी को फोन करके बताना पड़ता था . कीर्ति वर्धन अग्रवाल उन गिने चुने लेखको में हैं जिन्होने अपने समवयस्क लेखको में समय के साथ हिन्दी की कम्प्यूटर जनित तकनीको को प्रभावी रूप से अपनाया . आज जब मैने गूगल में कीर्ति वर्धन अग्रवाल लिख कर खोज की तो पल भर में ढ़ेरो परिणाम दृष्टव्य हुये , क्या इतना ही पर्याप्त नही है यह लिखने के लिये कि कीर्ति वर्धन अग्रवाल जी पर लिखा जा रहा यह ग्रंथ उनके मूल्यांकन हेतु एक बहुत छोटा सा कदम है . वे एक साथ ही बेंकिंग , ट्रेड यूनियन के लीडर , आलोचक , साहित्यकार , कवि , संपादक ,पत्रकार , बहु भाषा विद , अनुवादक , शोधार्थी , हिन्दी प्रचारक , कार्यक्रम आयोजक , और सबसे बड़ी बात एक अच्छे सरल हृदय मिलनसार इंसान हैं .संक्षेप में वे किसी संस्था के समानान्तर व्यक्तिव हैं .
कीर्ती वर्धन जी से मेरा पहला परिचय जबलपुर में तब हुआ जब वे यहां एक आयोजन में सम्मान ग्रहण करने आये हुये थे . सहज व्यक्तित्व के अग्रवाल जी को उनकी जबलपुर में उपस्थिति का लाभ उठाते हुये मैंने वर्तिका की मासिक काव्य गोष्ठी में निमंत्रित किया , वे एक साहित्यानुरागी के रूप में बड़ी आत्मीयता से तुरंत चले आये अपनी रचनायें सुनाई और वर्तिका के मित्रो की रचनायें पूरी तन्मयता से सुनी .उल्लेखनीय है कि साहित्य में निरंतरता का बड़ा महत्व होता है , हम जबलपुर में वर्तिका के माध्यम से प्रति माह के अंतिम रविवार की दोपहर को एक काव्य गोष्ठी रखते हैं जिसमें सभी मित्र नई रचनायें पढ़ते हैं , किसी न किसी संबंधित व्यक्तित्व को अतिथि के रूप में बुलाकर उसे सम्मानित करते हैं इससे सदस्यो का परिचय का दायरा बढ़ता है , नव लेखन होता है . इसी आयोजन में उस माह में जिस सदस्य का जन्म दिन होता है उसकी एक रचना का बड़ा सा पोस्टर फ्लैक्स तैयार करवा कर हम शहर के किसी सार्वजनिक स्थल पर पूरे माह प्रदर्शन हेतु रखते हैं . नई पीढ़ी में पठनीयता के अभाव को यह हमारा छोटा सा जबाब है , इस प्रयास से वर्तिका स्वयं पाठको तक पहुंचती है . मुझे स्मरण है कीर्ति वर्धन जी ने मंच पर मुझे इस प्रयास के लिये बधाई दी थी . बाद में हम निरंतर मोबाईल , व्हाट्सअप , फेसबुक के जरिये जुड़े हुये हैं . परस्पर वैचारिक आदान प्रदान करते हैं . मुझे उनकी छंदबद्ध रचनायें बहुत पसंद हैं . पारिवारिक जबाबदारियो के साथ यह सारी उपलब्धियां कुछ कागजो में सिमटी हुई इबारतो से अधिक उनके निरंतर कार्य , समर्पण , आस्था और असाधारण योग्यता की दास्तान हैं .
मैं कीर्ति वर्धन जी के सतत सक्रिय साहित्यिक सामाजिक योगदान के लिये उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं और अपनी अशेष मंगलकामनायें उनके उज्वल भविष्य के लिये अभिव्यक्त करता हूं . इस हिन्दी सेवक की शतायु यात्रा में यह अभिलेख ग्रंथ एक छोटा सा पड़ाव ही है , वे उस यात्रा के राही हैं जिनसे हिन्दी जगत को अभी बहुत कुछ पाने की आकांक्षा है .
vivek ranjan shrivastava
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