पुलकित पुलकित सी वसुंधरा श्रंगारित है अनुपम अनंत ,
रवि शशि,दिन रजनी नीलांबर वन उपवन महकें दिग दिगंत|
आशा अभिलाषा पूरित हो संग बाधाओं का सुखद अंत ,
जीवन में जितने पल आयें हर पल स्वमेव हो इक वसंत |होली में बोली प्यार की ही बोलते हैं रंग ,
हम मन के तराजू में पहले तोलते हैं रंग|
गीतों का है अबीर तो गजलों का है गुलाल,
शब्दों की चाशनी में अपने घोलते हैं रंग|लगी बरसात की झड़ियां चली पुरवाई मनभावन
बरस जातीं हैं अँखियाँ पर नहीं आये निठुर साजन |
तरसते देहरी अंगना ये झूले बाट तकते हैं ,
तुम्हें आवाज देता है हमारी आँख का सावन |व्याप्त है कण कण में तू ही प्राण है तू श्वास है
इस जगत का तू ही स्वामी तुझसे ही अरदास है|
सबका मालिक एक तू यह जानता सारा जहां ,
तू विधाता सबका दाता सारी दुनियां दास है|पुलकित पुलकित सी वसुंधरा श्रंगारित है अनुपम अनंत ,
रवि शशि,दिन रजनी नीलांबर वन उपवन महकें दिग दिगंत|
आशा अभिलाषा पूरित हो संग बाधाओं का सुखद अंत ,
जीवन में जितने पल आयें हर पल स्वमेव हो इक वसंत |ज्ञान कौ प्रकास देत हर लेतीं अविवेक तो सामान कौन मैया जग उपकारी है,
श्वेत वस्त्र धारी करे हंस की सवारी मातु वीणा कर धारी मैया शारदा हमारी है |
देओ वरदान करें तेरौ गुणगान मैया देऊ ध्यान इतनी सी अरजी हमारी है
किरपा तेरी नायं होती कैसे बरे ज्ञानज्योति 'आरसी'ने चरणों में वन्दना जुहारी है|रातरानी, नागचम्पा, गुलमोहर, कचनार हो,
तुम रजत के कंठ में ज्यों स्वर्णमुक्ता हार हो|
रजनीगन्धा की महक तुम ही गुलाबों की हँसी,
केतकी, जूही, चमेली, कुमुदिनी, गुलनार हो |प्रेम प्रतीक्षा है प्रेम परीक्षा है ,प्रेम का पाठ पढ़ा गयी शबरी ,
तन वृद्ध था आस ना वृद्ध हुई,और राम को आखिर पा गयी शबरी|
यदि भक्ति करो ,कुछ धैर्य धरो श्रद्धा की मशाल जला गयी शबरी ,
जिन्हें सच्चे ह्रदय से था चाहा सदा,उन्हें झूठे ही बेर खिला गयी शबरी |गर यह धरा है गोल ,इसका व्यास है कविता ,
परिधि पे भी है , केंद्र के भी पास है कविता |
दो बिन्दुओं को , दो दिलों सा ,जोडती है ये,
सच पूछिए एक ज्यामिति अभ्यास है कविता |
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