लखपती करोडपती
अरबपती
फिर भी और कुछ और
आकाँक्षा का अँतहीन छोर
कल के लिये ही सँजोना है ना तुम्हेँ ?
हो सके तो समेट लो सूरज की सारी धूप
कैद कर लो पूर्णिमा की चाँदनी
और रोक लो बहती हुई हवा
जाने कल मिले न मिले
पर इस सबके लिये तुम्हारी तिजोरी
बहुत छोटी पड जायेगी !
एक बात और
भर पेट ही खा पाओगे
और उतना ही कर पाओगे उपभोग
जितना कर लोगे
समेटने की हविश
से हटकर
उन्मुक्त विचरण करते हुये
Vivek Ranjan Srivastava
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY