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विश्व हिन्दी सम्मेलन की प्रासंगिकता

 

हिन्दी आज ३० से अधिक देशो में ८० करोड़ लोगो की भाषा है .विश्व हिन्दी सम्मेलन सरकारी रूप से आयोजित होने वाला हिन्दी पर केंद्रित महत्वपूर्ण आयोजन है . यह सम्मेलन प्रत्येक चौथे वर्ष आयोजित किया जाता है। इस वर्ष यह आयोजन भारत वर्ष में भोपाल में आयोजित हो रहा है .वैश्विक स्तर पर भारत की इस प्रमुख भाषा के प्रति जागरुकता पैदा करने, समय-समय पर हिन्दी की विकास यात्रा का मूल्यांकन करने, हिन्दी साहित्य के प्रति सरोकारों को मजबूत करने, लेखक-पाठक का रिश्ता प्रगाढ़ करने व जीवन के विवि‍ध क्षेत्रों में हिन्दी के प्रयोग को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से 1975 से विश्व हिन्दी सम्मेलनों की श्रृंखला आरंभ हुई है । हिन्दी को वैश्विक सम्मान दिलाने की इस परिकल्पना को सबसे पहले पूर्व प्रधानमन्त्री स्व.श्रीमती इंदिरा गांधी ने मूर्त रूप दिया था .


सम्मेलन में विश्व भर से प्रतिनिधि भाग लेंगे जिनमें गैर हिन्दी भाषी ‘हिन्दी विद्वान’ शामिल हैं। इन प्रतिनिधियों में से अनेक प्रतिनिधि खुद के खर्च पर इस सम्मेलन में भाग लेंगे जो उनके हिन्दी प्रेम को दर्शाता है। 1975 में नागपुर पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के सहयोग से न संपन्न हुआ था जिसमें विनोबाजी ने हिन्दी को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित किये जाने हेतु संदेश भेजा था।

उसके बाद मॉरीशस, ट्रिनिदाद एवं टोबैको, लंदन, सूरीनाम में ऐसे सम्मेलन हुए। इनमें से कम से कम चार सम्मेलनों में संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप स्थान दिलाये जाने संबंधी प्रस्ताव पारित हुए पर आज भी हिन्दी को यह स्थान नही दिलाया जा सका है ।


यह सम्मेलन प्रवासी भारतीयों के ‍लिए बेहद भावनात्मक आयोजन होता है। क्योंकि ‍भारत से बाहर रहकर हिन्दी के प्रचार-प्रसार में वे जिस समर्पण और स्नेह से भूमिका निभाते हैं उसकी मान्यता और प्रतिसाद भी उन्हें इसी सम्मेलन में मिलता है।


पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन

पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी से 14 जनवरी 1975 तक नागपुर में आयोजित किया गया। सम्मेलन का आयोजन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के तत्वावधान में हुआ। सम्मेलन से संबंधित राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष उपराष्ट्रपति श्री बी.डी. जत्ती थे। पहले विश्व हिन्दी सम्मेलन का बोधवाक्य था -वसुधैव कुटुंबकम। इस सम्मेलन में 30 देशों के कुल 122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मेलन में हिन्दी भाषा के लिए पारित किए गए विचार थे-

1- संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान दिया जाए।

2- वर्धा में विश्व हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना हो।

3- विश्व हिन्दी सम्मेलनों को स्थायित्व प्रदान करने के लिए अत्यंत विचारपूर्वक योजना निर्माण की जाए।


दूसरा विश्व हिन्दी सम्मेलन

दूसरे विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में हुआ। 28 अगस्त से 30 अगस्त 1976 तक चले इस विश्व सम्मेलन के आयोजक मॉरीशस के प्रधानमंत्री डॉ शिवसागर रामगुलाम थे। सम्मेलन में भारत से केबिनेट मंत्री डॉ. कर्ण सिंह के नेतृत्व में 23 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने भाग लिया। भारत के अतिरिक्त सम्मेलन में 17 देशों के 181 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।


तीसरा विश्व हिन्दी सम्मेलन

भारत के सरकारी कार्यालयों में हिन्दी के कामकाज की स्थिति उस रथ जैसी है जिसमें घोड़े आगे की बजाय पीछे जोत दिए गए हों।' उक्त विचार हिन्दी की सुप्रसिद्ध संवेदनशील कवियत्री महादेवी वर्मा ने तीसरे विश्व हिन्दी सम्मेलन के समापन अवसर पर व्यक्त किए थे। तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन भारत की राजधानी दिल्ली में 28 अक्टूबर से 30 अक्टूबर 1983 तक किया गया था। इस सम्मेलन के राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष डॉ. बलराम जाखड़ थे। सम्मेलन में कुल 6,566 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया जिनमें विदेशों से आए 260 प्रतिनिधि शामिल थे। सम्मेलन का सुखद संयोग यह था समापन समारोह की मुख्य अतिथि महादेवी वर्मा थीं।


चौथा विश्व हिन्दी सम्मेलन

चौथे विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन 2 दिसंबर से 4 दिसंबर 1993 तक पुन: 17 साल बाद मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में आयोजित किया गया। आयोजन की जिम्मेदारी मॉरीशस के कला, संस्कृति मंत्री मुक्तेश्वर चुनी ने निभाई थी। भारत के प्रतिनिधिमंडल के नेता थे मधुकर राव चौधरी। तत्कालीन गृह राज्यमंत्री श्री रामलाल राही प्रतिनिधिमंडल के उपनेता थे। इसमें 200 विदेशी प्रतिनिधियों ने भाग लिया .


पांचवां विश्व हिन्दी सम्मेलन :

पांचवां विश्व हिन्दी सम्मेलन त्रिनिदाद एवं टोबेगो की राजधानी पोर्ट ऑफ स्पेन में 4 अप्रैल से 8 अप्रैल 1996 तक में आयोजित हुआ। भारत की ओर से इस सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिनिधिमंडल के नेता अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल श्री माता प्रसाद थे। सम्मेलन का केन्द्रीय विषय था- प्रवासी भारतीय और हिन्दी। इसके अलावा अन्य विषयों पर ध्यान केन्द्रित किया गया, वे थे-हिन्दी भाषा और साहित्य का विकास, कैरेबियाई द्वीपों में हिन्दी की स्थिति एवं कप्यूटर युग में हिन्दी की उपादेयता। सम्मेलन में भारत से 17 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने हिस्सा लिया। अन्य देशों के 257 प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए।


छठा विश्व हिन्दी सम्मेलन :

छठा विश्व हिन्दी सम्मेलन लंदन में 14 सितंबर से 18 सितंबर 1999 तक आयोजित किया गया। इसके अध्यक्ष थे डॉ. कृष्ण कुमार और संयोजक डॉ.पद्मेश गुप्त। सम्मेलन का केंद्रीय विषय था-हिन्दी और भावी पीढ़ी। विदेश राज्यमन्त्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने भाग लिया। प्रतिनिधिमंडल के उपनेता थे प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ.विद्यानिवास मिश्र। इस सम्मेलन का ऐतिहासिक महत्त्व है क्योंकि यह हिन्दी को राजभाषा बनाए जाने के 50वें वर्ष में आयोजित किया गया था। यही वर्ष संत कबीर की छठी जन्मशती का भी था। सम्मेलन में 21 देशों के 700 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इनमें भारत से 350 और ब्रिटेन से 250 प्रतिनिधि शामिल हुए।


सातवां विश्व हिन्दी सम्मेलन :

5 जून से 9 जून 2003 तक सुदूर सूरीनाम की राजधानी पारामारिबो में सातवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन हुआ। 21वीं सदी में आयोजित यह पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन था।

आयोजक थे जानकीप्रसाद सिंह। केन्द्रीय विषय था-विश्व हिन्दी: नई शताब्दी की चुनौतियां। भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व विदेश राज्य मंत्री दिग्विजय सिंह ने किया। भारत के 200 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसमें 12 से अधिक देशों के हिन्दी विद्वान शामिल हुए।


आठवां विश्व हिन्दी सम्मेलन :

आठवां विश्व हिन्दी सम्मेलन 13 जुलाई से 15 जुलाई 2007 तक संयुक्त राज्य अमेरिका की राजधानी न्यूयॉर्क में हुआ। इस सम्मेलन का केंद्रीय विषय था -विश्व मंच पर हिन्दी। इसका आयोजन भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा किया गया।


नौवां विश्व हिन्दी सम्मेलन

22 सितंबर से 24 सितंबर 2012 तक, दक्षिण अफ्रीका के शहर जोहांसबर्ग में संपन्न हुआ . सम्मेलन स्थल का नाम गांधीग्राम रखा गया था. विभिन्न सत्र नेलसन मंडेला सभागार सहित अन्य सभागारों में संचालित किए गये। इन सत्रों के नाम शांति, सत्य, अहिंसा,नीति और न्याय रखे गए .


वैश्विक स्तर पर हिन्दी सम्मेलनो के आयोजन के समानान्तर प्रयास ..


हिन्दी प्रेमियो के द्वारा निजी व्यय व व्यक्तिगत प्रयासो से सरकारी आयोजनो के साथ ही समानान्तर प्रयास भी किये जा रहे हैं . इसी कड़ी में दुबई में ६ वाँ अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन फरवरी २०१३ में आयोजित किया गया . इन समानान्तर हिंदी सम्मेलनों में आप भी स्वयं के व्यय पर भाग ले सकते हैं . निजी स्तर पर ये वैश्विक आयोजन रायपुर, बैंकाक, मारीशस, पटाया और ताशकंद (उज्बेकिस्तान) , संयुक्त अरब अमीरात में अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलनों के सफलतापूर्वक आयोजन के रूप में हो चुके हैं . सम्मेलन का उद्देश्य स्वंयसेवी आधार पर हिंदी-संस्कृति का प्रचार-प्रसार, भाषायी सौहार्द्रता तथा सामूहिक रूप से सांस्कृतिक अध्ययन-पर्यटन सहित एक दूसरे से अपरिचित सृजनरत रचनाकारों के मध्य परस्पर रचनात्मक तादात्म्य के लिए अवसर उपलब्ध कराना भी है।इस तरह के प्रयास हिन्दी के माध्यम से सरकारी दूत बनकर व्यक्तिगत हित साधने वाले स्वार्थी लोगो पर एक करारा प्रहार भी हैं और समर्पित हिन्दी प्रेमियो का एक यज्ञ भी .


विश्व हिन्दी सम्मेलनो की प्रासंगिकता हिन्दी को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित करने में है . इस बार जब भोपाल में यह आयोजन हो रहा है , तब हिन्दी भाषी क्षेत्र में और हिन्दी को व्यापक समर्थन देने वाले राजनैतिक सरकारी वातावरण में आयोजन की सफलता अवश्यसंभावी है .

 

 

 


विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र

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