परमार्थ जिस माटी में…
तन निर्मित जिस माटी से
रिश्ता जन्मभूमि का है
पंचतत्व का अहम मेल है
मिलने और बिछड़ने से
क़सम उसी माटी का खाता
खाता जिसका अन्न है तू
इश्क़ का बाह्य दिखावा करता
परमार्थ जिस माटी में
नन्हा था इससे लिपटा
लिपट-लिपट चलना सीखा
दास समझता क्यों है आज
जिससे तेरे सिर का ताज
विभिन्न रंग इस माटी के
उर्वर,ऊसर के प्रकार
भेद नही, विच्छेद नही
मानव तुझे क्यों खेद नही ?
अंधकार से डरता है तू
अंधेरा क्यों करता है
मानव मानव को नोंच रहा
इंसानियत का गला क्यों घोंट रहा
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