चाय की प्याली
है सच्चा प्रेम, प्रेमिका मेरी,
यह तुझे पता है मुझे पता।
निज कामों में होती देरी,
हो सदा साथ, चाहत मेरी।।
नींद भरी जब आंखों में,
चेतनाशून्य हो जाता हूँ।
नींद से आँखें मूँद रही,
तुझे देख उठ जाता हूँ।।
होती सुबह और शाम तुम्ही से,
कामों में जज़्बात तुम्ही से।
चाय की प्याली से जगता हूँ,
मध्य रात्रि अक्सर सोता हूँ।
सफ़र अजूबा, न कोई दूजा,
हमसफ़र मेरी मैं जगता हूँ।
तेरी गर्मी आते ही मुझमें,
उत्साहित दुगना हो जाता हूँ।।
प्यार सभी करते तुझसे,
मिज़ाज महज़ बदले देखे।
कोई ग्रीन टी, कोई शुगरफ्री,
कोई शुगर से करता इंट्री।।
शायराना मैं हो जाता हूँ,
जब होंठ से तुझे लगाता हूँ।
लफ्ज़ों का तासीर गर्म,
गर्मजोशी में खो जाता हूँ।।
प्रेमियों के हाथों लगते ही,
प्रेम कथा बन जाती है।
कृषक के हाथों लगते ही,
सुबह नई हो जाती है।।
-ज़हीर अली सिद्दीक़ी
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