Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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प्यार की इबारत

 
प्यार की इबारत 

अंधेरे से डरता हूँ फिर भी
थकान से निजात और
मन की तरोताजगी के लिए
कामों में विराम देकर
अंधेरी  रात चुनी जाती है
ऐसा ही तो होता है 
प्यार में और इबादत में भी 
लोग डरते तो हैं परन्तु
इसी पृष्ठभूमि में ही तो
कभी विराम देकर तो कभी 
निरन्तर करतल ध्वनि पर
भय की भंवरजाल से निकल
क़ामयाबी की इबारत और
प्यार का घर बसता है
जो अंधेरे को काटता है
स्याह जैसी रात को पार कर
चाँदनी रात के आगोश में 
अविस्मरणीय विचरण करता है
समय का ही खेल है प्यारे
वक़्त के गुज़रने में ही मेल है
समय से पहले फल पक भी गया 
तो वह मिठास कहाँ जो वक़्त में
आज की तपस्या ही कल
मीठे फल को जन्म देती है
'संजीदगी' में गोते लगा 
वैचारिक आत्ममंथन कर
जल्दीबाजी में सीढ़ियों से कूदना या
बाकी बची सीढ़ियों को चढ़कर
शिखर पर पहुँचना सुखदायी है?
आज की क्षणभंगुर प्रेमकथा
दो सीढ़ी चढ़ने के बाद 
दम तोड़ देती है कूदकर
प्यार की इबारत लिखे बग़ैर।

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