ये प्यार नही तो क्या है?
पानी से प्यास बुझती है
लेकिन मेरी प्यास
तेरे नयनों की नमी में
समा गयी है।
नयनों को निहारे बग़ैर
प्यासे सा तड़पता हूँ,
ऐसे लगता है मानो
तेरी ग़ैर मौज़ूदगी में
मरुस्थल की वीरानियाँ
प्यास की प्रेतात्मा बन
डरा रही हों।।
तेरे आंखों के काजल
घनघोर घटा लिए
तसल्ली दे रहे हैं
ज़रूरत भर बारिश की
नयन से एक बूंद आँसू
यदि ख़ुशी से निकले तो
शाश्वत कर,
चिरंजीव बना देता है
यदि पीड़ा से निकले तो
मेरे ऊपर बज्रपात लगता है
बाढ़ सा विनाश दिखता है।।
मेरी भूख मानो
तेरे चेहरे की मुस्कान,
और मासूमियत में
समा गयी हो
यदि मुस्कान दिखा तो
ख़ुद एक दस्तरख़ान बन
तुझमें ही पकवानों की
असीम अनुभुति करता हूँ
वरना पकवानों में भी
नीरसता महसूस करता हूँ।।
तुझे देखते ही
भूल जाता हूँ ख़ुद को
भूख-प्यास को,
नजा की तक़लीफ़ को
शिक़वे-गिले को
आज़ाद परिंदा बन
प्यार के धुन में
संसार के सारे सुख समेट
विचरण करने लगता हूँ
अब तू ही बता
ये प्यार नही तो क्या है?
-ज़हीर अली सिद्दीक़ी
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