Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कुछ यूं ही

 

कुछ यूं ही...
-अजन्ता शर्मा          

जिन्दगी चल ! तुझे बांटती हूँ
उनसे कट करखुद को काटती हूँ

कितनों में जियाकितनों ने मारा मुझे
लम्हों को कुछ इस तरह छांटती हूँ

ठूंठ मे बची हरी टहनियां चुनकर
नाम उनका लेज़मीं में गाडती हूँ

जिन्दगी चल ! तुझे बांटती हूँ...

 

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