Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

ज़िंदगी

 

ज़िंदगी
-अजन्ता शर्मा

जो सुलगता है उसे चुपचाप बुझाना है,
जिंदगी तेरे रंग मे रंग जाना है.

गर पढ़कर कोई सहर का दिलासा दे,
जला के हाथ लकीरों को मिटाना है.

पोछ्ना है धुंधले क्वाबों की तस्वीर,
कोरी सहीहकीकत से दीवार सजाना है.

गर लड़ना हीं है तो खाली क्यों उतरें?
अपनी तरकश को ज़ख्मों का खजाना है

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ