ज़िंदगी
-अजन्ता शर्मा
जो सुलगता है उसे चुपचाप बुझाना है,
जिंदगी तेरे रंग मे रंग जाना है.
गर पढ़कर कोई सहर का दिलासा दे,
जला के हाथ लकीरों को मिटाना है.
पोछ्ना है धुंधले क्वाबों की तस्वीर,
कोरी सही, हकीकत से दीवार सजाना है.
गर लड़ना हीं है तो खाली क्यों उतरें?
अपनी तरकश को ज़ख्मों का खजाना है
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