Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आधुनिक फागुनी घनाक्षरी

 


नालियों के कीच संग, लिपे पुते सारे अंग,
देख देख दादा दंग, कैसी आज होली है.
दारू ले ले बने नंग, भूले भंग की तरंग,
पी पी बने हैं अपंग, कैसी आज होली है.
लहराते ज्यों भुजंग, लज्जित हुए अनंग,
मची लोफरी की जंग, कैसी आज होली है,
अजब हैं रंग-ढंग, छोरी-गोरी सभी तंग,
खोती जाती है उमंग, कैसी आज होली है..

 

 

 

रचनाकार:
इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

 

 

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