करिये मत अब प्रतिक्रिया, वरना होगी जेल.
धाराओं से युक्त है, नेताजी का खेल.
नेताजी का खेल, मित्र को सदा सुहाता.
अभयदान दें आप, क्योंकि चच्चा का नाता.
डर-डर दण्ड, प्रणाम, साथ है विनती डरिये.
सब निंदक हों दूर, काम कुछ ऐसा करिये..
धारा छाछठ ए गयी, मिली सत्य को शक्ति.
धैर्य और संयम रहे, ऐसी हो अभिव्यक्ति.
ऐसी हो अभिव्यक्ति, रहे सम्मान सभी का.
कहें संतुलित शब्द, बने जंजाल न जी का.
आहत, मन-मष्तिष्क, न हो कोई बेचारा.
निज पर कसें लगाम, बहे सद्भावी धारा..
--इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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