जलियांवाला बाग में, आई भीड़ अपार.
हृदय-हृदय में था वहाँ, भारत माँ से प्यार.
भारत माँ से प्यार. त्याग बलिदान अनोखा.
जनरल डायर क्रूर, किया उसने था धोखा.
भीषण गोलीकांड, कराया जड़कर ताला.
भारी नरसंहार, गवाही जलियांवाला..
बालक ऊधम के हुआ, अंतर्मन में बोध.
कैसे भी लेना मुझे, डायर से प्रतिशोध.
डायर से प्रतिशोध, लिया लन्दन में जाकर.
तानी थी पिस्तौल, सदन में उसको पाकर.
ख़त्म किया अध्याय, मारकर अरि कुल पालक.
तब फाँसी पर झूल, गया बलिदानी बालक..
अर्पित हैं श्रद्धा सुमन, निज छंदों के आज.
बालक से होकर युवा, जागे आज समाज.
जागे आज समाज, सिंह ऊधम को जाने.
आस्तीन के साँप, छुपे दुश्मन पहचाने.
उन्हें मार कर मित्र, राष्ट्र प्रति बनें समर्पित.
धन्य क्रांति के वीर, पुनः श्रद्धांजलि अर्पित..
--इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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