वेतन भत्ते लें बढ़ा, चतुर सांसद नित्य.
साथ विधायक मिल करें, बहुत भला यह कृत्य.
बहुत भला यह कृत्य, सुखद सुविधा के मारे.
कैसे दें हम दोष? यही आदर्श हमारे.
मनचाहा अधिकार, उदर में जाए जनधन.
विवश अदालत शीर्ष, बढ़ा लें भत्ते वेतन..
उसकी सेवा तीस की, किन्तु नहीं दें यार.
पांच साल में पेंशन, माननीय के द्वार.
माननीय के द्वार, माल यह बहुत जरूरी.
सुविधाभोगी श्रेष्ठ, समझ सकते मजबूरी,
कर्मचारियों बुद्धि तुम्हारी क्योंकर खिसकी?
मत करना अब मांग, देख मत इसकी उसकी..
शाही सेवा है यही, पांच वर्ष का काल.
राजनीति में आइए, होंगे मालामाल.
होंगे मालामाल, अधिकतम भत्ते वेतन.
माननीय हो नाम, सुरक्षा सुविधा दनदन.
मिले पेंशन मस्त, मुफ्त हो आवाजाही.
यहाँ विधायक और, सांसद सेवा शाही..
--इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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