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Dr. Srimati Tara Singh
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वंशी और वास्तु

 

वंशी और वास्तु :
(बांसुरीवादन व स्थापन से वास्तुदोष परिहार)

वंशी का पौराणिक इतिहास:
भगवान श्रीकृष्ण और वंशी एक दुसरे के बिना अधूरे हैं, प्रभु श्रीकृष्ण की वंशी तो शब्दब्रह्म का प्रतीक है। ऐसा भी समझा जाता है कि बांसनिर्मित वंशी के आविष्कारक संभवतः कन्हैयाजी ही हैं | साथ-साथ ऐसा भी कहा जाता है की ब्रह्मा के किसी शाप वश उनकी मानस पुत्री माँ सरस्वती को बॉस रूपी जड़रूप में धरती पर आना पडा था किन्तु किसी संयोग वश जड़ होने से पूर्व उन्होंने एक सहस्त्र वर्ष तक भगवत-प्राप्ति के लिए तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर प्रभु ने कृष्णावतार में उन्हें अपनी सहचरी बनाने का वरदान दिया | तब उन्होंने ब्रह्माजी के शाप का स्मरण करके प्रभु से कहा, " हे प्रभु! मैं तो जड़बांस के रूप में जन्म लेने के लिए श्रापग्रस्त हूँ |" यह सुनकर प्रभु ने कहा, "यद्यपि तुम्हें जन्म चाहे जड़ रूप में मिलेगा, तथापि मैं तुम्हें अपनाकर तुम में ऐसी प्राण-शक्ति अवश्य भर दूंगा जिससे तुम एक विलक्षण चेतना का अनुभव करके अपनी जड़ों को सदैव के लिए चैतन्य बनाए रख सकोगी |" तब से इस जगत में प्रभु के अधरों पर वंशी, मुरली, वेणु या बांसुरी के रूप में वस्तुतः ब्रह्मा जी की मानस पुत्री सरस्वती जी ही निरंतर विराजमान हैं | वंशी या बांसुरी का वर्णन सबसे पहले सामवेद में ही मिलता है | वस्तुतः बांसुरी संगीत के सप्त स्वरों की एक साथ प्रस्तुति का सर्वोत्तम वाद्ययंत्र है |

वंशी, मुरली, वेणु या बांसुरी की मधुर धुन तन-मन को परमानंद से भर देती है | यह क्या जड़ क्या चेतन सभी के मन का हरण कर लेती है इसके गीत की धुन सुनकर गोपियाँ अपनी सुध-बुध तक खो बैठती थीं. गोपियाँ तो गोपियाँ, वहां की सारी गायें तक इस धुन से आकर्षित होकर कन्हैया के सम्मुख आ उपस्थित होती थीं | वंशी की तान सुनकर आज भी हम सभी को असीमित आनंद की अनुभूति होती है | कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के लिए इसे बजाने से पूर्व एक बार इसकी अभूतपूर्व परीक्षा भी ली थी | एक दिन उनके वंशीवादन करते ही वास्तव में यमुना की गति ही रूक गई तदनंतर एक दिन वृन्दावन के पाषाण तक वंशी ध्वनि का श्रवण कर द्रवीभूत हो उठे साथ-साथ पशु-पक्षी व देवताओं के विमान आदि की गति भी रूक गई, जिससे सभी स्तब्ध हो उठे | इस प्रकार जब वंशी की पूर्ण परीक्षा हो गई तब श्यामसुन्दर ने अपनी ब्रजगोपांगनाओं के लिए वंशी बजाई | जिन ब्रजदेवियों ने वंशीगीत सुना वे सभी अपनी सुधबुध ही खो बैठीं साथ-साथ उन सभी के अंत करण में किशोर श्यामसुन्दर का सुन्दर मनोहारी स्वरूप विराजमान हो गया | ब्रह्म, रूद्र, इन्द्र आदि ने भी उस वंशी का सुर सुना, वे सभी एक विशेष भाव में मुग्ध तो हुए, उनमें से किसी-किसी की समाधि भी भंग हुई परन्तु वंशी का तात्विक रहस्य निश्चिंत रूपेण उस समय किसी को भी ज्ञात न हो सका | यह भी कहा जाता है कि एक बार राधा जी ने बांसुरी से पूछा, "हे बांसुरी! यह बताइये कि मैं कृष्ण जी को इतना प्रेम करती हूं, फिर भी मैं अनुभव कर रही हूँ कि मेरे श्याम मुझसे अधिक तुमसे प्रेम करते है, वह तुम्हे सदैव ही अपने होठों से लगाये रखते है, इसका क्या राज है? तब विनीत भाव से बांसुरी ने सुरीले स्वर में कहा, "प्रिय राधे! प्रभु के प्रेम में पहले मैंने अपने तन को कटवाया, फिर से काट-छाँट कर अलग करके जलती आग में तपाकर सीधी की गई, तद्पश्चात मैंने अपना मन भी कटवाया, अर्थात बीच में से आर-पार एकदम पूरी की पूरी खाली कर दी गई | फिर जलते हुए छिद्रक से समस्त अंग-अंग छिदवाकर स्वयं में अनेक सुराख़ करवाये | तदनंतर मैं कान्हा ने मुझे जैसे बजाना चाहा मै ठीक वैसे ही अर्थात उनके आदेशानुसार ही बजी |अपनी मर्ज़ी से तो मैं कभी भी नहीं बज सकी | बस हममें व तुममें एकमात्र यही अंतर है कि मैं कन्हैया की मर्ज़ी से चलती हूं और तुम कृष्णजी को अपनी मर्ज़ी से चलाना चाहती हो!" वस्तुतः यह प्रेम में त्याग व समर्पण की पराकाष्ठा है |

वास्तु दोष परिहार :
एक समय था जब अधिकाँश घरों में कोई न कोई व्यक्ति वंशी बजाने में प्रवीण होता ही होता था | यहाँ तक कि अपने लोक गीतों में भी कहा गया है कि "देवर जी आवैं वंशी बजावैं" किन्तु आज के आधुनिक दौर में अपने देश में गिने चुने बांसुरीवादक ही रह गए हैं जबकि विदेशों में इसे अत्यंत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है | चायना जैसे देश में तो अधिकांश लडकियाँ तक बांसुरी वादन में प्रवीण हैं वहां की वास्तु विद्या फेंगशुई के अनुसार वास्तु दोष के निवारण हेतु बांस की बांसुरी का प्रयोग अति उत्तम है लो पिच पर उत्पन्न की गयी इसकी शंख समान ध्वनि से आस-पास के वातावरण में व्याप्त सूक्ष्म वायरस तक नष्ट हो जाते हैं | यह धनात्मक ऊर्जा का सर्वश्रेष्ठ स्रोत है जिसकी उपस्थिति में नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है | फेंग-शुई में ऐसी मान्यता है कि इसे लाल धागे में बाँध कर भवन के मुख्य द्वार पर क्रास रूप में दो बांसुरी एक साथ लगाने से भवन में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं हो पाता है और अचानक आने वाली मुसीबतें दूर हो जाती हैं | शिक्षा, व्यवसाय या नौकरी में बाधा आने पर शयन कक्ष के दरवाजे पर दो बांसुरियों को लगाना शुभ फलदायी होता है | ऐसी भी मान्यता है कि बीम के नीचे बैठकर काम करने, भोजन करने व सोने से दिमागी बोझ व अशान्ति बनी रहती है किन्तु उसी बीम के नीचे यदि लाल धागे में बांधकर बांसनिर्मित वंशी लटका दी जाय तो इस दोष का परिहार हो जाता है | बीमार व्यक्ति के तकिये के नीचे बांसुरी रखने से रोगमुक्ति होगी है | यह भी मान्यता है कि यदि घर के अंदर किसी तरह की बुरी आत्मा या अशुभ चीजों का संदेह हो तो इसे घर की दीवार पर तलवार की तरह लटकाकर इन चीजों से घर को मुक्त किया जा सकता है साथ-साथ यदि वैवाहिक जीवन ठीक न चल रहा हो तो सोते-समय इसे सिराहने के नीचे रखने से आपसी तनाव आदि दूर हो जाता है | जन्माष्टमी के दिन बांसुरी को सजाकर भगवान कृष्ण के समझ रखकर इसकी पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है | धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान् श्रीकृष्ण को बांसुरी अत्यधिक प्रिय है और वे इसे सदैव अपने साथ ही रखते हैं इसी कारण से इसे अति पवित्र व पूज्यनीय माना जाता है | यह भी भगवान् श्रीकृष्ण का वरदान ही है कि जिस स्थान पर बांसुरीवादन होता रहता है वह स्थान वास्तुदोष जनित दुष्प्रभावों व बीमारियों से पूर्णतः सुरक्षित रहता है | वहां पर परिवार के सदस्यों के विचार सकारात्मक हो जाते हैं जिससे उन्हें सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है | बांसुरी से निकलने वाला स्वर प्रेम बरसाने वाला ही है | इसी वजह से जिस घर में बांस निर्मित बांसुरी रखी होती है वहां पर प्रेम और धन की कोई कमी नहीं रहती है साथ साथ सभी दुःख व आर्थिक तंगी भी दूर हो जाती है |

सहज उपलब्धता :
बजाने योग्य वंशी आमतौर पर वाद्ययंत्रों की दुकानों पर सहजता से उपलब्ध हो जाती है | वैसे तो अक्सर किसी भी मेले में बांसुरी बेचने वाले दिखाई दे जाते हैं किन्तु उनके पास बहुत छाँट-बीन करने के उपरान्त भी बहुत कम ही बजाने योग्य बाँसुरियाँ उपलब्ध हो पाती हैं | कुंछएक बैंड की दुकानों पर भी बिक्री के लिए यह उपलब्ध हो जाती है | इसके विभिन्न ट्यून की तेरह, अठारह व चौबीस बांसुरियों के ट्यून्ड सेट भी उपलब्ध हो जाते हैं जिनकी अधिकतर आपूर्ति उत्तर प्रदेश के पीलीभीत शहर से की जाती है | नबी एण्ड संस यहाँ के प्रमुख बांसुरी निर्माता हैं जो विदेशों तक में बांसुरी का निर्यात करते हैं | पीलीभीत को बांसुरी नगरी के नाम से भी जाना जाता है |

कुछ प्रसिद्द व प्रमुख बांसुरी वादक :
भगवान् श्रीकृष्ण (सर्वश्रेष्ठ बांसुरी वादक)
पंडित पन्नालाल घोष
पंडित भोलानाथ
पंडित हरिप्रसाद चौरसिया
पंडित रघुनाथ सेठ
पंडित विजय राघव राव
पंडित देवेन्द्र
पंडित देवेन्द्र गुरूदेश्वर
पंडित रोनू मजूमदार
पंडित रूपक कुलकर्णी
बांसुरी वादक श्री राजेंद्र प्रसन्ना
बांसुरी वादक श्री एन रामानी
बांसुरी वादक श्री समीर राव
पंडित प्रमोद बाजपेयी (वरिष्ठ एडवोकेट)
स्वैच्छिक बांसुरी वादक श्री नरेन्द्र मोदी (वर्तमान प्रधानमंत्री भारत सरकार)
स्वैच्छिक बांसुरी वादक श्री लालकृष्ण आडवानी (वरिष्ठ राजनेता)
स्वैच्छिक बांसुरी वादक श्री मुक्तेश चन्द्र (पुलिस कमिश्नर)
बांसुरी वादक श्री बलबीर कुमार (कनॉट प्लेस सब वे पर बांसुरी विक्रेता व बांसुरी-शिक्षक) आदि..

आज के दौर में बांसुरी वादकों की संख्या बहुत ही कम रह गयी है | कहीं-कहीं पर ये खोजने से भी नहीं मिल पाते हैं | इसका प्रमुख कारण हमारे संस्कारों की क्षति व पश्चिमी सभ्यता का अन्धानुकरण ही है | हमारी सरकारों व समाज को इस ओर ध्यान देकर बांसुरीवादकों के लिए सम्मानजनक रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराने चाहिए |

 

 

 

प्रस्तुति:
--आर्कीटेक्चरल इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

 

 

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