अपने बागों वनों व उपवनों में आम के बौर से लदी शाखाओं पर पंचमस्वर में कूकती कोयलों, पुष्पों पर मंडराती हुई तितलियों व भौरों के मध्य स्वर्ण सदृश सूरजमुखी व सरसों के पीले फूलों से उठने वाली सुगंध ही हम सभी को वसंत ऋतु की मादकता का मधुर अहसास कराती है | सभी ऋतुओं में वसंत का अपना एक अलग महत्व है। वसंत का आगमन उल्लास और उमंग लाता है। वातावरण में विशेष स्फूर्ति दिखने लगती है जिससे मन अपने कोमल और निर्मल स्वभाव के साथ हिलोरे लेता रहता है। वसंत ऋतु में मानव तो मानव, समस्त पशु-पक्षी तक उल्लासित हो जाते हैं। यूं तो माघ का पूरा मास ही उत्साह देने वाला होता है, किन्तु माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाने वाला वसंत पंचमी का पर्व हम सनातन धर्मियों के लिए विशेष महत्व का होता है| वस्तुतः हमारे सनातन धर्म के प्रत्येक रीति-रिवाज, पर्व व संस्कार में एक रहस्य छिपा रहता है जो कि हमारे मानसिक व आत्मिक विकास का कारण बनता है इन्हीं विशेषताओ के कारण इसे सम्पूर्ण विश्व में ऊँची पदवी पर रखा गया है और इसी में से एक है वसन्त-पंचमी या ऋषि-पंचमी का अद्भुत पर्व जो कि हम सनातन धर्मियों द्वारा ऋतु परिवर्तन के साथ-साथ सामजिक समारोह के रूप में माँ सरस्वती के जन्म दिवस के रूप में पूजन के साथ मनाया जाता है इसलिए इस दिन माँ शारदा की पूजा कर उनसे ज्ञानवान व विद्यावान होने की कामना की जाती है। हमारे कलाकारों में इस दिन का विशेष महत्व है। बहुसंख्य कवि, लेखक, गायक, वादक, नाटककार, नृत्यकार अपने उपकरणों की पूजा के साथ मां सरस्वती की वंदना करते हैं। इस पर्व को मनाने के पीछे कई धार्मिक मान्यताएं भी हैं, उनमें से एक मान्यता के अनुसार जब ब्रह्मा ने भगवान विष्णु की आज्ञा से इस सृष्टि की रचना की तो विशेषकर मनुष्यों की रचना के बाद ब्रह्मा ने देखा तो उन्हें लगा कि कुछ कमी रह गई है, जिसके कारण चारों ओर मौन ही छाया रहता है। तब भगवान विष्णु से अनुमति लेकर उन्होंने एक चर्तुभुजी देवी की रचना की, जिनके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला सुशोभित थीं। ब्रह्मा ने उन देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुर नाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में जैसे चेतना आ गई। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती नाम दिया इन्हीं देवी को ही भगवती, शारदा, वीणावादिनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। वसंत पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं। माँ सरस्वती की वीणा, संगीत की, पुस्तक, विचार की और वाहन मयूर को कला की अभिव्यक्ति के रूप में माना जाता है। ऋग्वेद में वर्णित भगवती सरस्वती की समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी आराधना की जाएगी। वस्तुतः वंशी के जड़बॉस रूप में माँ सरस्वती ही हैं जिन्हें भगवान श्रीकृष्ण वंशी के रूप में माँ सरस्वती को सदैव अपने साथ ही रखते है |
वंशी में हैं गुण बहुत, मनमोहक सुर तान.
ब्रह्मनाद, अति कर्णप्रिय, कान्हा का वरदान.
कान्हा का वरदान, मोहिनी मुरली वाणी.
सरस्वती जड़रूप, शापवश पर कल्याणी.
अधर धरे श्रीकृष्ण, बांस छिद्रित जड़अंशी.
वास्तुदोष सब दूर, जहाँ गूंजे ध्वनि वंशी..
छंद कुण्डलिया : इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
यह भी माना जाता है कि इसी दिन मानव को शब्दों की शक्ति मिली थी। बच्चों के विद्यारम्भ हेतु यह सर्वोत्तम दिवस है। प्राचीन काल से आज तक हमारे गुरुकुलों और घरों मे भी ये परंपरा रही है कि आज के ही दिन विद्यार्थियों को प्रथम अक्षर के रूप मे माँ सरस्वती का बीज मन्त्र "ऐं" उनकी जिह्वा पर केसर की स्याही से लिखकर और इसी मन्त्र का पाठ कराकर विद्यारम्भ कराया जाता है। ऐसी मान्यता है कि आज के दिन विद्यारम्भ करने से विद्या प्राप्ति मे बाधाएं नहीं आती हैं एवं माँ की विशेष कृपा उस विद्यार्थी पर निरंतर बनी रहती है।
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इसी दिवस में संगम स्नान को भी अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है। चूँकि बसंत ऋतु के प्रमुख देवी व देवता कामदेव व रति ही हैं और इसके अधि देवता साक्षात् भगवान् श्री कृष्ण हैं अतः बसंत पंचमी के दिन कामदेव-रति के पूजन का भी विधान है। वस्तुतः बसंत ऋतु मे प्रकृति मे एक आकर्षण सा उत्पन्न होता है जो कि कामदेव का ही एक स्वरुप है। हमारे भारतीय दर्शन शास्त्र ने काम को भी देव मानकर पूजा की है क्योंकि बिना काम के यह जीवन सर्वथा गतिहीन व नीरस ही है यदि काम नहीं तो सृष्टि कैसे संभव है? लेकिन कामदेव मात्र काम देव ही हैं न की दैत्य, अतः काम को सदैव मर्यादित व शास्त्र सम्मत ही होना चाहिए न कि उन्मुक्त और अश्लील| इसके सटीक नियंत्रण और रूपांतरण की व्यवस्था मात्र गृहस्थाश्रम में ही है। वस्तुतः शास्त्रसम्मत व मर्यादित जीवन जीने की प्रेरणा देना ही बसंत पंचमी का लक्ष्य है। तभी वसंत पंचमी के दिन कामदेव की पूजा भी की जाती है। सूर्य के कुंभ राशि में प्रवेश के साथ ही बसंतोत्सव मनाया जाने लगता है। बसंत के इस मौसम पर ‘शुक्र’ ग्रह का सर्वाधिक प्रभाव रहता है। चूँकि शुक्र काम और सौंदर्य का कारक ग्रह माना गया है अतः इसी अवधि में प्रकृतिजनित रति-काम महोत्सव होता है अर्थात समस्त पेड़-पौधे तक अपनी पुरानी पत्तियों को त्याग करके नई कोपलों से आच्छादित होने लगते हैं, पुष्पों की मादक सुगंध और भौंरों के गुंजन से सम्पूर्ण जगत में मदहोशी का वातावरण बन जाता है। यदि स्पष्ट रूप से कहा जाय तो इस ऋतु मे प्रकृति के सौन्दर्य मे एक कमनीय निखार सा आ जाता है व पक्षियों के व्यवहार मे कलरव, पुष्पों पर भौरों का गुंजार होने लगता है। संभवतः इसी कारणवश इसे मधुमास भी कहते होंगे। बसंत के इस मौसम पर ‘शुक्र’ ग्रह का सर्वाधिक प्रभाव रहता है। शुक्र काम और सौंदर्य का कारक ग्रह माना गया है।
वसंत ऋतु की भी एक अद्भुत यूनानी कहानी के अनुसार यूनान में अनाज और कृषि की देवी 'डैमेटर' की एक रूपवती पुत्री फलेरी थी। एक बार वसंत ऋतु में फलेरी, चुपचाप अपनी माँ का सोने का रथ हाँककर आसमान से धरती पर आ उतरी और अपने रथ को धरती के राजा प्लेटो के शाही बगीचे में ले जाकर सभी को मदहोश करने वाले रंग-बिरंगे सुगन्धित पुष्पों के मध्य विहार करते हुए कभी पुष्पों को तोड़ने लगी तो कभी प्यारी-प्यारी तितलियों को पकड़ने लगी। अकस्मात् किसी कार्यवश राजा प्लेटो अपने शाही उपवन में आ गया तो अचानक उसकी नजर फूलों के मध्य विहार कर रही खड़ी खूबसूरत युवती फलेरी पर जा टिकी | उस पर दृष्टि पड़ते ही राजा उस पर मोहित हो गया परिणामतः उसका अपहरण कर वह उसे अपने महल में ले गया और उसके साथ गुपचुप विवाह रचा लिया। इधर जब डैमेटर को अपनी बेटी स्वर्गलोक में कहीं दिखाई न दी तो वह उसकी खोज में पृथ्वी पर उतरी| पृथ्वी बहुत खोजने पर भी उसे अपनी बेटी कहीं न मिली। अंततः निराश होकर वह एक वृक्ष के नीचे बैठकर घोर विलाप करने लगी, जब सूर्य देवता ने डैमेटर को इस से विलाप करते हुए देखा तो अत्यंत करुणा के वशीभूत होकर उन्होंने फलेरी का पता उसे बता दिया। अपनी पुत्री के अपहरण का समाचार सुनते ही डैमेटर अत्यंत क्रुद्ध हो गई। देवी होने की शक्ति से क्रोधवश उसने अविलम्ब ही यह शाप दे दिया कि जब तक कि उसकी बेटी उसे वापस नहीं मिल जाती तब तक इस पृथ्वी पर अनाज का एक भी दाना न निकले, यद्यपि वहां के किसानों ने अपने खेतों में हाड़-तोड़ श्रम किया, अपने खेतों को खाद से पाट दिया, किंतु सब कुछ व्यर्थ ही रहा वहां पर अनाज का एक दाना तक नहीं उगा, ऐसे में पृथ्वी पर त्राहि-त्राहि मच गयी। वहां के खेत-खलिहान सभी सूने हो गये जिससे सभी देवताओं को यह चिंता होने लगी कि कहीं पृथ्वी पर अकाल न पड़ जाए? अंत में देवताओं में प्रधान, राजा जुपिटर ने यह निश्चय किया कि उसे शीघ्र ही इन दोनों के मध्य कोई समझौता करा देना चाहिए, अन्यथा अनर्थ ही हो जाएगा परिणामतः उसने डैमेटर से आग्रह किया कि वह अपना ऐसा कड़ा प्रतिबंध पृथ्वी से हटा ले ! लेकिन, डैमेटर तो अड़ी हुई थी कि जब तक उसे अपनी बेटी प्राप्त नहीं हो जाती तब तक वह पृथ्वी पर एक भी अंकुर नहीं फूटने देगी। इधर राजा प्लेटो भी फलेरी को किसी मूल्य पर छोड़ना नहीं चाहता था। अंत में जुपिटर ने दोनों के बीच एक समझौता कराया कि फलेरी छः महीने राजा प्लेटो के पास रहेगी और छः महीने अपनी माँ के पास। तब से ऐसी मान्यता है कि फलेरी जब अपने पति के पास होती है तो बसंत ऋतु आ जाती है परिणामतः सुगन्धित पुष्प चहुँ ओर पुष्पित होकर अपनी छटा बिखराने लगते हैं। बौराए के वृक्षों पर कोकिल की सुरीली वाणी सुनाई देने लगती है और जब छः महीने के लिए वह अपनी प्यारी-प्यारी माँ के पास लौटती है तो पृथ्वी पर पतझड़ ही आ जाता है।
हमारी परम्परानुसार हमारे देश में वसंत पंचमी का पर्व ज्ञान की देवी 'मां सरस्वती' के जन्म दिवस के रूप में ही मनाया जाता है। इसी दृष्टि से वसंत का मौसम सभी के लिए बहुत महत्त्व रखता है। कहा जाता है कि वसंत-पंचमी के दिन माँ सरस्वती के बारह नामों के उच्चारणमात्र से ही विद्या के क्षेत्र में अभूतपूर्व सफलता मिलती है| वसंत-पंचमी से पूर्व माघी-चतुर्दशी लगते ही मध्य रात्रिकाल में ब्राह्मी पान का विधान भी है, वर्तमान में जनपद सीतापुर के नैमिषारण्य में आचार्य कृष्णाचार्य द्वारा सनातन संस्कृत विद्यार्थियों को गोमती नदी के जल में खड़े कराकर दिव्य औषधि ब्राह्मी का पान कराया जाता है जिससे उनकी बुद्धि अत्यंत प्रखर हो जाती है |
वसंत पञ्चमी पर माँ सरस्वती के बारह नाम:
शुचि 'शारदा' 'भुवनेश्वरी' माँ 'भारती' 'वागीश्वरी'.
चिर 'ब्रह्मचारिणि' 'बुद्धिदात्री' 'चंद्रकांति' सुरेश्वरी.
'वरदायिनी' 'कुमुदी' 'सरस्वति' ज्ञानदा, सर्वेश्वरी.
शुभ 'हंसवाहिनि' मातृ 'जगती' उज्जवला श्वेताम्बरी..
छंद हरिगीतिका: इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
पूजन की विधि : वसंत पंचमी को प्रातः उठकर बेसनयुक्त तेल का शरीर पर उबटन करके स्नान करना चाहिए, तद्पश्चात हम सभी को स्वच्छ पीले वस्त्र धारण कर पीला चंदन, पीला अक्षत, पीले फूल, धूप दीप नैवेद्य, पीले वस्त्र, वाद्य यंत्र, पुस्तकें, गंगा जल, पान के पत्ते, सुपारी, लौंग, इलायची, आदि से माँ सरस्वती की प्रतिमा को उच्चासन पर रख कर विधिवत आराधना करनी चाहिए तथा खड़े होकर मां सरस्वती की सस्वर आरती करनी चाहिए साथ ही केशरयुक्त मीठे चावल का भोग लगा कर उसका सेवन अवश्य करना चाहिए।
नव पीतचन्दन, पीतपुष्पं, पीतवस्त्रं, अक्षतं.
नैवेद्य, गंगाजल, इलायचि, लौंग, ताम्बूलं, फलं.
सह धूपदीपं, पुस्तकं, शुचि वाद्ययन्त्रं, शोभितं.
उच्चासने प्रतिमा सुशोभित माँ सरस्वति पूजितं..
छंद हरिगीतिका: इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
माँ सरस्वती स्तुति निम्नलिखित है:
"या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता। या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।। या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता। सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्याप।"
माँ के निम्न सिद्ध मन्त्रों में से किसी भी मन्त्र का निज श्रद्धानुसार 1,3,5,1,7 अथवा 11 माला का जाप किया जा सकता है..
मन्त्र 1: ऐं
मन्त्र 2: नील सरस्वती स्तोत्र का पाठ करें
मन्त्र 3: ॐ वद वद वाग्वादिनी स्वाहा
मन्त्र 4: सरस्वती चालीसा का रोज प्रातः पाठ करें
मन्त्र 5: विद्या प्राप्ति के लिए गणेश जी के बीज मन्त्र ॐ गं गणपतये नमः का भी जाप किया सकता है।
इस ऋतु में स्वास्थ्य रक्षा:
हेमंत ऋतू के तत्काल बाद का मौसम सौम्यकाल कहलाता है | इस मौसम में त्वचा रूखी हो जाती है जिसकी समुचित देखभाल आवश्यक होती है | आमाशय में रसों में वृद्धि होने से पाचन शक्ति बढ़ जाती है जिसके लिए पर्याप्त आहार आवश्यक हो जाता है जिसके साथ-साथ हमें यह भी ध्यान रखना होता है कि शरीर में पानी की कमी न होने पाए| पर्याप्त पानी पीने से शरीर के अपशिष्ट पदार्थ बाहर निकल जाते हैं व शरीर स्वस्थ रहता है| इस मौसम में जोड़ों के दर्द व ब्लड- प्रेशर की समस्या से बचने के लिए मेथी व दालचीनी का भरपूर प्रयोग करना चाहिए| आजकल जाड़े से बचने के लिए अक्सर गैसचालित या विद्युतचालित इनडोर रूम हीटर का प्रयोग किया जाता है जिससे वहां पर आक्सीजन की कमी होने लगती है अतः तत्संबंधित कमरों के दरवाजे लगातार बंद नहीं रहने चाहिए व सोते समय हीटर बंद ही कर देना चाहिए| निम्नलिखित स्वरचित दोहों के माध्यम से इस मौसम में रखी जाने वाली आहार-विहार संबंधी सावधानियों पर प्रकाश डालने का एक प्रयास गया है |
सौम्य काल ऋषि-पंचमी, करे रसों में वृद्धि..
बढ़ती पाचन शक्ति है, तन मन में हो शुद्धि..(1)
कड़-कड़ करती ठण्ड में, रूखा लगे शरीर.
भली गुनगुनी धूप में, दूर सभी की पीर..(2)
चना उड़द तिल गुड़ शहद, मेवा और खजूर.
सेवन इनका नित्य यदि, रहती सर्दी दूर..(3)
चौलाई अदरक दही, अरहर सोयाबीन.
सूखा मेवा नारियल, जाड़े में लें 'बीन'..(4)
मूंगफली गाजर भली, शकरकंद लें भोर.
स्वस्थ रखेगा आँवला, च्यवनप्राश का जोर..5)
तेल लेप उबटन करें, हजम करें तर माल.
भ्रमर कुमुदिनी मेल हो, मनमोहक सुर ताल..(6)
आहार:-
इस काल में खारे व मधुर रसप्रधान द्रव्य, पचने में भारी, गरम व स्निग्ध एवं घी आदि से बने पदार्थ खाने-पीने चाहिए साथ-साथ तिल, गुड़, नारियल, खजूर, सूखा मेवा, चौलाई, बाजरा, दही चना, अरहर, उड़द, सोयाबीन, एवं विविध पाकों का सेवन लाभदायी है। उत्तम स्वास्थ्य के लिए हमें सोंठ, पीपर, आँवला, घी, तेल, गन्ना, दूध, आदि से बने स्वादिष्ट एवं पौष्टिक व्यंजनों का सेवन करना चाहिए। प्रातःकाल में नाश्ते हेतु रात को भीगा हुआ व सुबह उबाला हुआ चना या केला, शकरकंद, मूँगफली, गुड़, गाजर आदि सस्ता व पौष्टिक आहार के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है। इस मौसम में 'शुंठी पाक' का सेवन अति उत्तम है।
त्याज्य वस्तुएँ- बर्फ, फ्रिज का पानी, शीत पदार्थ, वातकारक और बासी पदार्थ व रूखे-सूखे, कसैले, तीखे तथा कड़वे रसप्रधान द्रव्य आदि , खटाई का अधिक सेवन वर्जित है। आँवला, नींबू, ताजा दही, छाछ आदि सीमित मात्रा में प्रयोग किया जा सकता हैं।
विहारः- इस ऋतु में शरीर को बलवान बनाने के लिए प्रतिदिन शुद्ध सरसों या जैतून के तेल की मालिश करनी चाहिए। यदि उपलब्ध हो सके तो सप्तधान्य उबटन लाभकारी है। उचित व्यायाम, खेलकूद, दौड़ आदि के साथ साथ प्राणायाम और योगासनों का अभ्यास करना चाहिए। सूर्यनमस्कार, सूर्यस्नान एवं धूप का सेवन इस ऋतु में अत्यंत लाभदायक है। ठण्ड चाहे कितनी भी क्यों न हो, सुबह जल्दी स्नान कर लेना अति उत्तम है। रात्रि में सोने के परिणामस्वरूप हमारे शरीर में जो भी अत्यधिक गर्मी उत्पन्न होती है, वह स्नान करने से तत्काल ही बाहर निकल जाती है, जिससे समग्र शरीर में स्फूर्ति का संचार हो जाता है। प्रातःकाल देर तक सोने से शरीर की बढ़ी हुई गर्मी सिर, आँखों, उदर, पित्ताशय, मूत्राशय, मलाशय, शुक्राशय आदि अंगों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है, जिससे कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो सकते हैं।
अपथ्यः- इस ऋतु में अधिक उपवास करना अत्यधिक ठंड सहना, ठंडी हवा, भूख सहन करना आदि हानिकारक है। स्वयं के चित्त को काम, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष से व्याकुल रखना विशेष हानिकारक है। हमें इस काल में दिन में नींद लेने से भी बचना चाहिए |
इति शुभम....: इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
LEAVE A REPLY