पुरातन काल से
आते रहे हैं
इस धरा पर
अनगिनत भूकम्प
जो पहुँचाते रहे हैं
हमें भरपूर नुकसान
पर देखिये विडम्बना
हम बनाते रहे हैं
अधिकतर
कमजोर घर ही ……..
भूकम्प लेता है जन्म
सरकने से
धरा की सतही प्लेटों के
उसके गर्भ में उत्पन्न
आन्तरिक हलचल से
उपजते हैं हम भी
कुछ इसी ही तरह से
विवेक-शून्य वातावरण में
मचलने से
अधिकतर
सुखानुभूति के अहसासों से ही …….
इतिहास गवाह है
भूकम्प ने
नहीं बख़्शा
किसी को भी
नहीं छोडा
कोई भी कमजोर घर
पर हम तो आगे निकले
और भी चार कदम
किसको छोडा हमने भी
नाता तोडा अपनों तक से …….
अपनाकर तन्यता,
लचीलापन और दृढ़ता
व मजबूत बन्ध
बन जाता है भवन
सदैव के लिये भूकम्परोधी
पर हम ?
काश अपना पाते
हम भी
ऐसे ही सदगुणों को
प्रयोग कर पाते
विश्वास रूपी ईंटें
दृढ़ता रूपी सीमेन्ट
सौम्यता की रेत
स्नेह रूपी गारा
और आत्मबल रूपी लोहा
तो किसी भी तीव्रता के मापांक पर
हमारा घर और हम
हमेशा ही ठहरते भूकम्परोधी……..
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रचनाकार
--इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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