पारद शिवलिंग यदि करे, पारे का संस्पर्श
पानी बन पारा बहे, चिपके, छोड़े फर्श,
चिपके, छोड़े फर्श, उसे शिव-लिंग उठाये,
रगड़ हथेली मध्य, हस्त चम-चम चमकाये.
अँगुली काली देख, तिलक दें मस्तक, शारद.
चकित दृष्टि विज्ञान, सुखद, संस्कारित पारद..
रचनाकार: इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
(अत्यंत आश्चर्यजनक किन्तु सत्य: किसी संयोगवश एक दिन मेरे पुत्र नील श्रीवास्तव ने खेल ही खेल में पारे से पारद शिवलिंग को स्पर्श कर दिया जिससे वह पारा गोल बूँद का आकार त्यागकर विकृत रूप में आ गया जिससे आश्चर्यचकित होकर उसने मुझे इसके बारे में बताया तब मैंने यह अनुभव किया कि पारद शिवलिंग से संपर्क में आते ही स्पर्शमात्र से पारा अत्यंत पतला होकर अपना गोल बूँद रूपी आकार खो देता है न केवल यह अपितु किसी भी धातु से न चिपकने वाला पारा पारद शिवलिंग से तुरंत ही चिपक जाता है, इस स्थिति में जब उस शिवलिंग को हथेली पर रखकर अँगूठे व अँगुलियों की सहायता से रगड़ा जाता है तो वह पारा एकदम पानी की तरह शिवलिंग की सतह पर फैल जाता है अर्थात उस पर पारे की पालिश ही हो जाती है| रगड़ने इस प्रक्रिया में अँगुलियोँ व अंगूठे पर वही पारा कालिमा के रूप में इस प्रकार से लग जाता है कि हम उससे अपने माथे पर उस पारे का तिलक तक लगा सकते हैं | यह प्रयोग केवल शुद्ध रूप से संस्कारित असली पारद शिवलिग पर संभव है और यही असली पारद शिवलिंग की पहचान भी होगी वैसे पारद शिवलिंग भी पारे के अनेक संस्कारों को करने के उपरान्त उसके ठोस रूप में आ जाने पर उसी से निर्मित किया जाता है जबकि आधुनिक विज्ञान की पद्धति से सामान्य दाब व तापक्रम पर पारे को ठोस रूप में लाना संभव ही नहीं है | हमारे विचार में हमारा पुरातन धार्मिक ज्ञान वास्तव में अध्यात्म व अति उन्नत विज्ञान का सुन्दर समन्वय ही है)
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