Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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छंद हरिगीतिका

 


स्वर छेड़ती शीतल पवन शुभ, ऋतु वसंती आज है.
रतिकाम उत्सव छंदमय ही, धुन मधुर स्वर साज है.
तिथि पंचमी की है बधाई, पीत नव परिधान हो.
शुभ भाव प्रिय उर में बसें माँ, भारती का ध्यान हो..

 

 

नव पीतचन्दन, पीतपुष्पं, पीतवस्त्रं, अक्षतं.
नैवेद्य, गंगाजल, इलायचि, लौंग, ताम्बूलं, फलं.
सह धूपदीपं, पुस्तकं, शुचि वाद्ययन्त्रं, शोभितं.
उच्चासने प्रतिमा सुशोभित माँ सरस्वति पूजितं..

 

 

शुचि 'शारदा' 'भुवनेश्वरी' माँ 'भारती' 'वागीश्वरी'.
चिर 'ब्रह्मचारिणि' 'बुद्धिदात्री' 'चंद्रकांति' सुरेश्वरी.
'वरदायिनी' 'कुमुदी' 'सरस्वति' ज्ञानदा, सर्वेश्वरी.
शुभ 'हंसवाहिनि' मातृ 'जगती' उज्जवला श्वेताम्बरी..

 

 

शुचि शुभ्रवसना शारदा वीणाकरे वागीश्वरी.
कमलासिनी हंसाधिरूढ़ा बुद्धिदा ज्ञानेश्वरी.
अमृतकलश कर अक्षसूत्रं पुस्तकं प्रतिशोभितं
शरणागतम शुभ सत्त्वरूपम वेदमाता वंदितं..

 

 

नित श्वेतवर्णी शुभ्रवसना, का निरंतर ध्यान हो.
करिए प्रकाशित जन हृदय अब, दूर तम अभिमान हो.
मष्तिष्क में हो श्रीचरण, मन, हो सहज अभ्यस्त हो.
चलती रहे माँ लेखनी नित, शीश पर वरहस्त हो..

 

 

कल-कल नदी सी हो प्रवाहित, काव्य धारा-नित्य ही.
दें रश्मियाँ सद्ज्ञान की, चमके हृदय आदित्य ही.
हो तान वंशी की मधुर स्वर, गूँजता प्रतिक्षण रहे.
नित भाव उपजाएँ नवल नव, छंद निर्झरिणी बहे..

 

 

 

इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

 

 

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