Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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छंद कुण्डलिया

 

(१)
झाड़ू घर की लक्ष्मी, इसमें शक्ति अकूत.
साफ़-सफाई साथ में, करे पीठ मजबूत.
करे पीठ मजबूत, इसे जब थामे नारी.
धड़कन होती तेज, अक्ल झड़ जाती सारी.
करिए दण्ड प्रणाम, दिखे ज्यों आँख लताड़ू.
करें न ऐसा काम, उठा ले पत्नी झाड़ू..

 

(२)
झाड़ू झटपट झूमकर, करे झड़ा-झड़ प्यार.
झोला-झंझट भूल कर, झंकृत हों मन तार.
झंकृत हों मन तार, शुद्धि होती तन-मन की.
करती पूरा काम, जरूरत क्या है घन की.
चर्बी से दे मुक्ति, हमसफ़र कान उखाड़ू.
यदि बहके फिर 'आप', पीठ पर पड़नी झाड़ू..

 

(३)
हरियाली के हाथ में, हरा-हरा शृंगार.
होठों पर मुस्कान है, हाथों में हथियार.
हाथों में हथियार, देख घिग्घी बँध जाये.
बुद्धि सुधारक यन्त्र, सही यह राह दिखाये.
करें सदा परवाह, भले हो गोरी-काली.
झाड़ू करे सुधार, निहारें मत हरियाली..

 

 

 

रचनाकार: इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

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