Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चुलबुली चहके साली..

 

(छंद कुण्डलिया)

साली-जीजा साथ में, मन में उठे तरंग.

पत्नी आँख तरेरती, मर्यादा के संग.

मर्यादा के संग, मुदित हो मौज मनायें.

दोनों ही अलमस्त, साथ में झूमें गायें.

मगन मस्त मधुमास, नाचता दे-दे ताली.

बीबी बोले व्यंग्य, टाल दे हँसकर साली..

साली रस की खान है, किन्तु जलेबी जान.

चिपका ले यदि चाशनी, घट जाता सम्मान.

घट जाता सम्मान, बने जब नई कहानी,

घनचक्कर मष्तिष्क, साथ हो खींचातानी.

पत्नी है बृज धाम, भले हो गोरी काली.

मर्यादित हों मित्र, स्नेह दे सुन्दर साली..

साली चाहे स्वार्थवश, घरवाली निःस्वार्थ.

बाहरवाली से बचें, भाव भला परमार्थ.

भाव भला परमार्थ, भली घरवाली अपनी.

सदा निभाती साथ, सजीली सुन्दर सजनी.

सत्य यही है मित्र, किन्तु मन मगन मवाली.

चंचल इसकी चाह, चुलबुली चहके साली..

सच्ची बातें हैं यही, कुछ भी नहीं असत्य.

पत्नी है सब जानती, जीजा जी के कृत्य,

जीजाजी के कृत्य, निरंतर मन बहलाते.

मीठा मस्का मार, भ्रमित करते, टहलाते.

वह भी है आश्वस्त, करे क्यों माथापच्ची,

आयेगें इस ठौर, हृदय नित बोले सच्ची..

 

इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

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