दुनिया में सूखा पड़ा, पेट गया है सूख.
चुपड़ी रोटी चाहिए, मुझे लगी माँ भूख.
जन्मा कवि के वंश में, चंदा तो है दूर.
सूखी रोटी खा यहाँ, जी ले तू भरपूर..
आई है जन्माष्टमी, कान्हा का है राज.
चंद्र खिलौना चाहिए, मैया मोरी आज..
उस पर भी कब्जा हुआ, अमेरिका का हाथ.
चंदा भी भूला हमें, रहे चाँदनी साथ..
मामी मेरी चाँदनी, रहती सारी रात.
दूध पिलायेगी हमें, साथ मिलेगा भात..
मामा मामी दूर के, कभी न करते मेल.
मृगमरीचिका मान कर, माटी से तू खेल..
बाबा करते कल्पना, रचते कविता रोज.
फिर भी क्यों भूखे यहाँ, कब जायेंगे भोज..
इस माटी में दम बड़ा, इससे ही कर प्यार.
इक दिन होगा चाँद पर, लगा स्वयं में धार..
--अम्बरीष श्रीवास्तव
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