(श्रेणी : नवगीत)
सिंधु बिंदु-बिंदु हिंदु, एक रूप सारा
हिंदु-जाति जाति नहीं , है विचारधारा.
एक साथ रहते थे, धूप-छाँव सहते थे
हिन्दू ही भाई थे, बने जो इसाई थे
सिक्ख वीर हिन्दू ही, मुसलमान बंधू ही
पञ्च ध्यान करते थे वेद नित्य पढ़ते थे
परिवर्तित कभी हुए, तोड़ मुख्य धारा.
हिंदु-जाति जाति नहीं , है विचारधारा.
.प्रीति भाव जागे हैं, स्नेह संग पागे हैं
रक्त वही भाता है, आज फिर बुलाता है
भारती पुकारे फिर, सिंधु के किनारे फिर,
भाई का भ्राता है, एक वंश नाता है
दुश्मन तो बाँट-बाँट, कर रहे किनारा
हिंदु-जाति जाति नहीं , है विचारधारा.
लक्ष्य नित्य कर्म बने, राष्ट्रधर्म धर्म बने
भारतीय हिंदू हम, विश्व केंद्रबिन्दू हम
देश प्रेम में पगकर, राग द्वेष से बचकर
प्रांत-प्रांत जोड़ें हम, क्षेत्रवाद छोड़ें हम
एक बनें एक रहे, विश्व हो हमारा
हिंदु-जाति जाति नहीं , है विचारधारा.
सिंधु बिंदु-बिंदु हिंदु, एक रूप सारा
हिंदु-जाति जाति नहीं , है विचारधारा.
--इं० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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