Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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फागुनी मत्तगयन्द सवैया

 

 

मत्तगयन्द सी चाल चले शुचि, रूप सुधा रसपान करावै.
नैनन से हँसि वार करै चहुँ, ओर जो चंचल चैन न आवै.
गाल गुलाल कमाल क माल, हो हाल बेहाल, धमाल करावै.
जो निरखै दस बीस सेकेण्ड, उसे फिर ढंग से नाच नचावै..

 

 

 

--इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

 

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