Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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फसलें सब बर्बाद जो, संकट में है जान

 

 

फसलें सब बर्बाद जो, संकट में है जान.
भयवश प्राण गँवा रहा, कैसे जिये किसान?
कैसे जिए किसान? रकम कैसे हो पूरी?
सिर पर कर्ज उधार, चुके कैसे? मजबूरी.
खाद बीज छिडकाव, सिंचाई सब मन मसलें.
जागे अब सरकार, गयी पानी में फसलें..

 

रोता आज किसान है, दुर्लभ रोटी दाल.
मौज विधायक अब करें. लाखों बढ़े कमाल.
लाखों बढ़े कमाल, किन्तु सब चुप्पी साधे.
जो भी है नुकसान, चुका दें एकदम आधे.
चिंता में बेहाल, जान तक अपनी खोता.
चलें गाँव की ओर, न छोड़ें उसको रोता..

 

आहत आज किसान है, नहीं दुखों का छोर.
इसको समझें हम सभी, चलें गाँव की ओर.
चलें गाँव की ओर, उसे ढाढस बँधवायें.
उसके आँसूं पोंछ गले से उसे लगायें.
चितित मत हो मित्र, मिलेगी तुमको राहत.
हम सब देंगें साथ, नहीं अब होना आहत..

 

 

इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

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