Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गीता प्रेस है छापता

 

 

गीता प्रेस है छापता, जीवन दर्शन सार.
मानव के 'कल्याण' का, उठा रहा यह भार.
उठा रहा यह भार, बनें हम सब सहयोगी.
उत्तम कागज़, छूट, राज्य दे, माने योगी.
कर्मयोग हो लक्ष्य, समय निद्रा का बीता.
यही शाश्वत धर्म. सिखाती सबको गीता..

 

 

तंगी है कोई नहीं, न ही आर्थिक भार.
लाभ-हानि से है रहित, मत समझें व्यापार .
मत समझें व्यापार, कर्मचारी बड़भागी.
बनें प्रबंधन मित्र, कर्म प्रति वे अनुरागी.
डूबा नहीं जहाज, कहें गीताप्रेस जंगी.
बने सुदृढ़ आधार, नहीं हो सकती तंगी..
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--इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

 

 

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