Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

गणात्मक मनहरण घनाक्षरी

 

गणात्मक मनहरण घनाक्षरी
(रगण जगण)x2 +रगण+लघु, (रगण जगण)x2 +रगण
(चार चरण प्रति चरण ३१ वर्ण १६,१५ पर यति)
_________________________________
भूल अंग अर्ध-नग्न भूल वस्त्र देख तंग,
काम का करें विनाश धर्म-कर्म लाइये.
लोक-लाज खो गयी समाज में दिखे अनीति,
नीति-रीति पाठ आज, विश्व को पढ़ाइये.
अंग-भंग ही करें बलात-कर्म है निषिद्ध,
देवियाँ यहाँ अनेक पाठ ये सिखाइये.
शील-भंग हो नहीं बलात मित्र लोक मध्य,
शत्रु लाज लूटते स्वदेश में बचाइये..
_________________________________

 

 

इं० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ