Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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"हाँ हम हैं एक कायस्थ"

 

हाँ! हम हैं सदैव से ही न्याय के सत्य पथ पर
क्योंकि हम हैं परमपूज्य भगवान् चित्रगुप्त के वंशज.
हमें विश्वास है सिर्फ कर्म पर ही,
क्योंकि हम हैं एक कर्मयोगी ही.
रूढ़ियों व टोटकों पर हमें कदापि यकीन नहीं,
क्योंकि अंधविश्वास से है हमारी पर्याप्त दूरी,
छल-कपट व प्रपंच से नहीं हो सकती हमारी यारी,
क्योंकि इनकी कुण्डली हमसे मेल नहीं खाती.
यद्यपि हममें है सुभाष सा कुशल नेतृत्व,
स्वामी विवेकानंद जैसा असीमित धैर्य,
खुदीराम बोस का जोश, शास्त्री सा होश
और तो और जो सक्षम है सृजन व विनाश दोनों में ही,
ऐसी प्रबल लेखनी है हमारा हथियार.

 

 

तथापि आज के इस दौर में
हम स्वयं को क्यों नहीं पाते फिट?
आखिर कुछ तो है, क्योंकि
पहले थे हम जमीदार अब बन बैठे हैं किरायेदार
औरों के सापेक्ष हम हैं श्रीहीन,
जबकि कहे जाते हैं श्री के उपासक,
राजनीति में हमारी चलती नहीं
जबकि हो सकते हैं एक सफल राजनीतिज्ञ,
व्यापार से हैं हमारी दूरी,
जबकि ठहर सकते हैं एक श्रेष्ठ व्यापारी,
व्यवसाय हमें भाता नहीं,
जबकि हम हैं एक कुशल व्यवसायी,
सरकारी नौकरियों से हमें कर दिया गया है दूर,
जबकि उन पर है हमारा परम्परागत अधिकार,
ऐसा है मात्र इसलिए,
क्योंकि आज भी हम हैं एकदम अलग-थलग,
ठीक अपनी पाँचों अँगुलियों की तरह,

 

 

आज के इस प्रतिस्पर्धात्मक दौर में,
हम बचाना चाहते हैं यदि अपना अस्तित्व,
तो हमें अपने गिरेहबान में झांकना ही होगा.
समाज की मुख्य धारा में आने के लिए
लाला का चोला उतार कर,
हमें बनना होगा एक बंद मुट्ठी की तरह
कोरी स्वार्थपरता को त्यागकर बैठाना होगा
व्यवहारिकता व आदर्शवाद में संतुलित सामंजस्य,
तभी हम होंगें एक सफल व सच्चे सनातन भारतीय,
एवं सही अर्थों में एक वैश्विक कायस्थ..

 

 

रचनाकार:
इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

 

 

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